सुपुष्प meaning in Hindi
[ supusep ] sound:
सुपुष्प sentence in Hindi
Meaning
संज्ञा- मँझोले आकार का एक वृक्ष जिसके फल मीठे होते हैं:"हम तूत खाने के लिए शहतूत पर चढ़ गए"
synonyms:शहतूत, तूत, पूष, ब्रह्मकाष्ठ, पूग, पूषक, कुवेरक, नूद, ब्रह्मदारु, मदसार, तूल - एक मँझोले आकार के पेड़ से प्राप्त मीठा फल जो खाया जाता है:"बच्चे शहतूत तोड़कर खा रहे हैं"
synonyms:शहतूत, तूत, पूषक, नूद - एक प्रकार का ऊँचा वृक्ष जो शीशम के समान होता है:"सिरस की लकड़ी मजबूत होती है"
synonyms:सिरस, शिरीष, सिरसा, सिरिस, शुकद्रुम, शुकप्रिय, शुकवृक्ष, शुकपुष्प, शुकेष्ट, शिरीषक, विषघाती, विषनाशन, सुपुष्पक, सरिस, विषहंता, विषहन्ता, वृत्तपुष्प, वृद्धधूप, शुक, शुकतरु, अंधुल, अन्धुल - एक बहुत बड़ा पेड़ जिससे अलकतरा और तारपीन की तरह का तेल निकलता है:"देवदार की लकड़ी मज़बूत होती है"
synonyms:देवदार, देवदारु, इंद्रदारु, इन्द्रदारु, पीतुदारु, महादारु, दयार, सुरद्रु, सुरदारु, अमरकाष्ठ, देवकाष्ठ, अमरतरु, अमरदारु, श्रीवास, श्रीवासक, पूतद्रु, पूत-द्रु, पूतिकाष्ठ, पुतुद्र, शक्रदारु, माचीक, शक्रनेमी - एक झाड़ की कली जिसे सुखाकर मसाले और दवा के काम में लाते हैं:"लौंग के तेल का उपयोग दाँत दर्द में किया जाता है"
synonyms:लौंग, लवंग, लोंग, श्रीसंज्ञ, रुचिर, मादन, अमरकुसुम, पद्मा, वराल, वरालक, तोयधिप्रिय, त्रिदशपुष्प, चंदकपुष्प, चन्दकपुष्प, पद्मगुणा, तीक्ष्णपुष्प, पद्मालया, रुचिरा, त्रिदशपुत्र, श्रीपुष्प, श्रीप्रसून, बटुक, वटुक - एक झाड़ जिसकी कली को सुखाकर मसाले और दवा के काम में लाते हैं:"लौंग में पानी देना होगा"
synonyms:लौंग, लवंग, लोंग, रुचिर, मादन, पद्मा, वराल, वरालक, तोयधिप्रिय, त्रिदशपुष्प, पद्मगुणा, चंदकपुष्प, चन्दकपुष्प, तीक्ष्णपुष्प, पद्मालया, त्रिदशपुत्र, रुचिरा, श्रीपुष्प, श्रीप्रसून, बटुक, वटुक
Examples
- शुक्लार्क , तपन , श्वेत , प्रताप , सितार्क , सुपुष्प , शंकरादि नाम सफेद आक के हैं ।
- शुक्लार्क , तपन , श्वेत , प्रताप , सितार्क , सुपुष्प , शंकरादि नाम सफेद आक के हैं ।
- इस संबंध में एसडीओ सुपुष्प कुमार ने बताया कि खंभा गिरने और एक खंभा में करेंट उतरने से लालदरवाजा और रौजा उपकेंद्र से होने वाली नंबर-2 फीडर की आपूर्ति घंटों प्रभावित रही।
- मै कहाँ कहाँ नहीं गया स्वधर्म रक्षणार्थ किन्तु एक भी सहायतार्थ है मिला नहीं राष्ट्र का प्रसून दिव्य आज कुम्हला रहा परन्तु स्वार्थ वृत्ति से मनुष्य भी हिला नहीं ये ध्वजा त्रिवर्ण स्वाभिमान हीन हो अपार जीर्ण शीर्ण सी प्रतीत हो इसे सिला नहीं आसुरी प्रसार से अधर्म से महान कष्ट पा रही धरा यहाँ सुपुष्प भी खिला नहीं रचनाकार डॉ आशुतोष वाजपेयी लखनऊ