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छत्राकार in English
[ chatrakar ] sound:
छत्राकार sentence in Hindi
Examples
More: Next- छत्राकार या फंजीफॉर्म अंकुर-ये सूत्राकार अंकुरों के बीच-बीच में लाल दानों के रूप में छत्रक रूपी अंकुर होते हैं।
- छत्राकार या फंजीफॉर्म अंकुर-ये सूत्राकार अंकुरों के बीच-बीच में लाल दानों के रूप में छत्रक रूपी अंकुर होते हैं।
- यहाँ पर प्राचीन महाप्रस्तर काल के अनेक श्मशान-स्थल खोजे गये हैं जिन्हें कुडक्कल्लु (छत्राकार शिलाएँ), तोप्पिक्कल्लु (टोपी नुमा शिलाएँ), कल्मेशा (पत्थर से बनी मेज़), मुनियरा (मुनियों की कोठरी), नन्नङाडि (भस्मकुंभ) आदि नामों से जाना जाता है ।
- यहाँ पर प्राचीन महाप्रस्तर काल के अनेक श्मशान-स्थल खोजे गये हैं जिन्हें कुडक्कल्लु (छत्राकार शिलाएँ), तोप्पिक्कल्लु (टोपी नुमा शिलाएँ), कल्मेशा (पत्थर से बनी मेज़), मुनियरा (मुनियों की कोठरी), नन्नङाडि (भस्मकुंभ) आदि नामों से जाना जाता है ।
- वहाँ अर्जुन ने श्रीकृष्ण के साथ मिलकर समस्त देवताओं को युद्ध में परास्त करते हुए खाण्डववन को जला दिया और इन्द्र के द्वारा की हुई वृष्टि का अपने बाणों के छत्राकार बाँध से निवारण करके अग्नि देव को तृप्त किया।
- वहाँ अर्जुन ने श्रीकृष्ण के साथ मिलकर समस्त देवताओं को युद्ध में परास्त करते हुए खाण्डववन को जला दिया और इन्द्र के द्वारा की हुई वृष्टि का अपने बाणों के छत्राकार बाँध से निवारण करके अग्नि देव को तृप्त किया।
- वहां अर्जुन ने श्री कृष्ण के साथ मिलकर समस्त देवताओं को युद्ध में परास्त करते हुए खाण्डववन को जला दिया और इन्द्र के द्वारा की हुई वृष्टि का अपने बाणों के छत्राकार बांध से निवारण करके अग्नि देव को तृप्त किया।
- यहाँ पर प्राचीन महाप्रस्तर काल के अनेक श्मशान-स्थल खोजे गये हैं जिन्हें कुडक्कल्लु (छत्राकार शिलाएँ), तोप्पिक्कल्लु (टोपी नुमा शिलाएँ), कल्मेशा (पत्थर से बनी मेज़), मुनियरा (मुनियों की कोठरी), नन्नङाडि (भस्मकुंभ) आदि नामों से जाना जाता है ।
- भीष्म पितामह और धृतराष्ट्र के अपने प्रति दर्शित नैतिक व्यवहार के परिणामस्वरूप पांडवों ने खांडवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ में परिवर्तित कर दिया | पाण्डुकुमार अर्जुन ने श्रीकृष्ण के साथ खाण्डववन खाण्डववन को जला दिया और इन्द्र के द्वारा की हुई वृष्टि का अपने बाणों के (छत्राकार) बाँध से निवारण करते हुए अग्नि को तृप्त किया।।
- आलंकारिक पादपों के लिए छँटाई करनेवाले की इच्छा के अनुसार शंक्वाकार (गावदुम), छत्राकार (छतरीनुमा) आदि रूप दिया जा सकता है और कभी-कभी तो उन्हें हाथी, घोड़े आदि का रूप भी दे दिया जाता है, परंतु फलों के वृक्षों को साधारणत: कलश या पुष्पपात्र का रूप दिया जाता है और केंद्रीय भाग को घना नहीं होने दिया जाता।