karma in a sentence
Examples
- But those religious doctrines which were directly concerned with social and moral life , i.e . karma , punarjanma , the four stages of life and varnashram were taken bodily from the Vedic Hindu religion .
किंतु वे धार्मिक सिद्धांत , जिनका सामाजिक और नैतिक जीवन से सीधा संबंध था.अर्थात कर्म , पुनर्जन्म , जीवन की चार अवस्थाएं तथा वर्णाश्रम ज़्यों के त्यों वैदिक हिंदू धर्म से लिये गये थे . - But when the individual frees himself from the limits imposed by finiteness through the realisation of the Absolute , he breaks through the vicious circles of karma and sansar and attains moksha -LRB- salvation -RRB- .
किंतु जब मनुष्य चरम सत्ता की प्राप्ति के द्वारा , समीपता द्वारा थोपी गयी सीमाओं से अपने आपकों मुक़्त कर लेता है , तब वह कर्म और संसार के दूषित चक्र को तोड़ता है और मोक्ष प्राप्त करता है . - Then also, those major theories, which are followed by most of the Hindus are belive in : Dharma (Global Law), Karma (and its Fruits), Earthly cycle of reincarnation, Moksha (Freedom from Earthly Bonds - which may have many ways) and ofcourse,God.
फ़िर भी वो मुख्य सिद्धान्त जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं हैं इन सब में विश्वास : धर्म (वैश्विक क़ानून) कर्म (और उसके फल) पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति-जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक ईश्वर। - All ideas about psychology and the theory of knowledge found in Patanjali are taken from Sankhya philosophy : His aim , like that of Sankhya , is that the human soul should free itself from the bonds of nature , from its own body , from karma and sansar and attain the realisation of truth and the state of absolute peace of mind which he calls the Yoga .
पांतजलि योग में पाये जाने वाले मनोविज्ञान और ज्ञान के सिद्धांत सांख़्य दर्शन में से लिए गये है.सांख़्य के समान उसका उद्देश्य यह हे कि मनुष्य की आत्मा प्रकृति के बंधन से मुक़्त हो और सत्य की अनुभूति तथा मन की परम शांति प्राप्त करे , जिसे वह योग कहता है . - If the law of karma is inescapable and eternal and if the soul survives after death , then the impact of action on character and of character on action should also continue after death : The process , as the Upanishads conceive it is this : after death every individual soul goes , according to its good or bad conduct in life , to heaven or hell and after a short sojourn there is reborn as a superior or inferior beingman or animal .
यदि कर्म का नियम अनंत और न बचा जा सकने योग़्य है , और यदि मृत्यु के बाद आत्मा जीवित रहती है , तब कर्म का चरित्र पर और चरित्र का कर्म पर प्रभाव मृत्यु के बाद बना रहना चाहिए.जैसाकि उपनिषद् की मान्यता है , प्रक्रिया है कि मृत्यु के बाद प्रत्येक व्यक़्ति की आत्मा जीवन में अच्छे और बुरे आचरण के अनुसार स्वर्ग या नरक में जाती है और कुछ समय रूकने के बाद श्रेष्ठ या निकृष्ठ जीव , मनुष्य या पशु के रूप में पुनर्जन्म लेती