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परिणमन sentence in Hindi

pronunciation: [ parinaman ]
परिणमन meaning in English

Examples

  1. ाओं से भिन्न, समय सार स्वरुप, सुन्दर निर्मल चेतना जिनका चिन्ह है, जड़ द्रव्य के परिणमन से रहित तथा पद्मनंदी देव मुनी द्वारा वन्दनीय एवं समस्त गुणों के घर रुप सिद्धमण्डल को जो स्मरण करता है नमस्कार करता है ;
  2. द्रव्य अकेला ही निरन्तर परिणमन करता है वह परिणमन भी उस एक द्रव्य में ही पाया जाता है और परिणति क्रिया उसी एक में ही होती है इसलिये सिद्ध है कर्ता, कर्म, क्रिया अनेक होकर भी एक सत्तात्मक है।
  3. द्रव्य अकेला ही निरन्तर परिणमन करता है वह परिणमन भी उस एक द्रव्य में ही पाया जाता है और परिणति क्रिया उसी एक में ही होती है इसलिये सिद्ध है कर्ता, कर्म, क्रिया अनेक होकर भी एक सत्तात्मक है।
  4. परन्तु उनके उपदेशों का जो लोकोत्तर पहलू है, वह है पदार्थ की अनन्त गुण सम्पन्नता, परिणमन (अवस्था परिवर्तन) की स्वतन्त्रता, पर द्रव्यों के कर्तृत्व का अभाव और प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति व सामर्थ्य की घोषणा।
  5. सब परिणमन श्रेणीबद्ध है, इसलिए तुम तो मात्र जानने वाले हो पूर्ण जाननहार इसमें विकार और अपूर्णता क्या?! एक रूप परिपूर्ण ही हो!........ परिपूर्ण परमात्मा हो!!!!! मैं ही परमात्मा हूँ ऐसा स्वीकार कर! राग की क्रिया करने वाले क्या वो तुम हो? अज्ञान
  6. सब परिणमन श्रेणीबद्ध है, इसलिए तुम तो मात्र जानने वाले हो पूर्ण जाननहार इसमें विकार और अपूर्णता क्या?! एक रूप परिपूर्ण ही हो!........ परिपूर्ण परमात्मा हो!!!!! मैं ही परमात्मा हूँ ऐसा स्वीकार कर! राग की क्रिया करने वाले क्या वो तुम हो? अज्ञान...
  7. अर्थ-इस प्रकार जो मनुष्य असम (असाधारण) अर्थात् संसारी आत्माओं से भिन्न, समय सार स्वरुप, सुन्दर निर्मल चेतना जिनका चिन्ह है, जड़ द्रव्य के परिणमन से रहित तथा पद्मनंदी देव मुनी द्वारा वन्दनीय एवं समस्त गुणों के घर रुप सिद्धमण्डल को जो स्मरण करता है नमस्कार करता है ;
  8. इसको सरल ढंग से प्रतिपादित करते हुए कहा है कि जो वस्तु जिस रुप में परिणमन करती है या जो जिस कार्य को करता है वही कार्य विभिन्न क्रियाओं को भी प्राप्त होता है, उसमें वर्तमान भी निश्चित रहता है और भविष्य के कारण भी दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि एक ही समय में या एक ही जीवन में विविध रुप इस संसार में प्रतीत होते हैं।
  9. हम अगर गम्भीरता से विचार करें तो जीव वास्तव में ज्ञान ही करता है, ज्ञान के अतिरिक्त अन्य समस्त कार्य तो जगत के पदार्थो में अनकी अपनी परिणमन योग्यता व गुणों के अनुसार स्वत: ही होते रहते हैं, जीवों में ज्ञान भी उनके क्षयोपशम के अनुसार न्यूनाधिक पाया जाता है तथा यह भी आवश्यक नहीं है कि सभी का क्षयोपशम एक सा ही हो या जिसे हम महत्व पूर्ण समझते हैं उस विषय में हमारी बुद्धि चले ही।
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