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प्रस्फुरण sentence in Hindi

pronunciation: [ prasphuran ]
प्रस्फुरण meaning in English

Examples

  1. शारदा के मंदिर में प्राणों का प्रस्फुरण होना चाहिए, लेकिन निराशा के निश्वास नहीं निकलने चाहिए।
  2. स्फुरण, प्रस्फुरण यह दिखाते स्पेक्ट्रम से पहचान बताते, नगण्य कहो तुम इनको कितना अनेक प्रभाव यह दिखलाते ।
  3. ब्रह्मचारिणी-जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है.
  4. जन हित की इच्छा से किये गये तप के फलस्वरूप सुदर्शन क्रिया का प्रस्फुरण हुआ, जो कि आर्ट आफ़ लिविंग की कार्यशालाओं की धुरी बन गई।
  5. फिर भी लीक से हटकर काम करने वाले उन सभी शिक्षकों को नमन, जो अपनी लिमिटेशंस में भी संवाद का, संस्कारों के प्रस्फुरण का रास्ता ढूँढ ही लेते हैं।
  6. फिर भी लीक से हटकर काम करने वाले उन सभी शिक्षकों को नमन, जो अपनी लिमिटेशंस में भी संवाद का, संस्कारों के प्रस्फुरण का रास्ता ढूँढ ही लेते हैं।
  7. ध्यान में उसके लक्षण अधिक स्पष्ट होने लगते हैं और चक्र के स्थान पर उससे सम्बन्धित मातृकाओं, ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों में अचानक कम्पन, रोमांच, प्रस्फुरण, उत्तेजना, दाद, खाज, खुजली जैसे अनुभव होते हैं।
  8. सिंदूरी केमिल्या बिखरे गली में, मन करता है फुदकूँ फूलों पर! फूलों की झाडी कलियों से लदी उमगती है हर्षोल्लास से! निहार कर नीलाकाश को ज़ेल्कोवा वृक्ष के पार, पत्तों के पंख करते प्रस्फुरण महसूस करती हूँ स्फूर्ति वृक्ष के सशक्त स्कंध से! आह गमन पुलकित! सुनते हो क्या प्रकृति को? फूलों के स्वर, वृक्षों के प्रस्फुरण? पहले रविवार की सुबह, बसंत ऋतु में जाते समय गिरिजाघर!
  9. सिंदूरी केमिल्या बिखरे गली में, मन करता है फुदकूँ फूलों पर! फूलों की झाडी कलियों से लदी उमगती है हर्षोल्लास से! निहार कर नीलाकाश को ज़ेल्कोवा वृक्ष के पार, पत्तों के पंख करते प्रस्फुरण महसूस करती हूँ स्फूर्ति वृक्ष के सशक्त स्कंध से! आह गमन पुलकित! सुनते हो क्या प्रकृति को? फूलों के स्वर, वृक्षों के प्रस्फुरण? पहले रविवार की सुबह, बसंत ऋतु में जाते समय गिरिजाघर!
  10. मन की माटी में कभी उगाता धान कभी गेहूं, बाजरा, मकई तरह तरह के अनाज साग सब्जियां, फल पाषाण हृदय, वक्रबुद्धि के आघात से सूख जाती फसल किन्तु धूप, हवा और बादल देते मुझे जीवन-दान दिन प्रति दिन किसी न किसी विन्दु पर चाहता हूं प्रकृति का अवदान क्योंकि वहीं तो प्रत्येक स्थिति में करती है संकट से परित्राण ऊब और खीझ भरा दिन चर्याओं के बीच आस्था परिवर्तन में हंसी और क्रन्दन में प्राप्य और अप्राप्य की बांटा बाटी में हृदय के प्रस्फुरण में अंकुरित होता नवचिन्हत मन की माटी में...
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