स्वामी ब्रह्मानन्द sentence in Hindi
pronunciation: [ sevaami berhemaanend ]
Examples
- विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए ब्रह्मर्षि शिवयोगी दण्डी सन्यासी श्री १ ० ८ स्वामी ब्रह्मानन्द जी सरस्वती (कपिल महाराज) द्वारा रचित व अभिमंत्रित पाठ और उनकी पठन-विधि।
- स्वामी ब्रह्मानन्द की तपस्थली श्री अमरनाथ गुफा का प्रतीक तीन खण्ड़ीय भजन कुटी में अष्ट लोकपाल (इन्द्रादि) के प्रतीक स्थापित है और द्वादश ज्योतिर्लिंगों के प्रतीत स्थापित है।
- स्वामी विवेकानन्द · स्वामी ब्रह्मानन्द · स्वामी अद्भूतानन्द · स्वामी अखंडानन्द · स्वामी प्रेमानन्द · स्वामी अभेदानन्द · स्वामी सारदानन्द · स्वामी शिवानन्द · स्वामी रामकृष्णानन्द · स्वामी सुवोधानन्द · स्वामी
- संस्थापक-अध्यक्ष एवं कर्मकाण्ड व्यवस्थापक के रूप में स्वामी ब्रह्मानन्द जी ने श्री कैलास कपिल पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट गऊघाटी मण्ड़ोर, जोधपुर पिन ३ ४ २ ३ ० ४ राजस्थान की स्थापना की है।
- प्रस्तुत ग्रन्थ भगवत्पूज्यपाद् जगद्गुरु श्री शङ्कराचार्यं ब्रह्मलीन श्री स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज के मङ्गलमय सर्वजन हितकारी उपदेशों के साथ-साथ गीता, उपनिषद् ब्रह्मसूत्र, शास्त्र पुरणादि प्रामाणिक धर्मग्रन्थों का सार स्वरूप में प्रकाशित किया जाता है।
- अंततः 22 सितंबर 1942 को स्वामी ब्रह्मानन्द जी, [[Jagdev Sidhanthi | जगदेव सिंह सिद्धान्ती]] और श्री छोटूराम के आग्रह पर स्वामी भगवान देव जी ने [[Gurukul Jhajjar | गुरुकुल झज्जर]] का कार्यभार संभाला ।
- श्री अरूणाचल पर्वत तीर्थ में जहॉं ब्रह्मा-विष्णु का युद्ध हुआ था, जहॉं काल-भैरव की उत्पत्ति हुई थी, जहॉं से शिवलिंग की पूजा प्रारंभ हुई थी वहॉं स्वामी ब्रह्मानन्द जी का मुख्य सेवा केन्द्र ज्ञान प्राप्ति के लिए स्थापित है।
- प्रयास में सफलता मिली और अनन्त श्री विभूषित स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज को सब प्रकार से सुयोग्य और समर्थ जानकर उन्हें शङ्कराचार्य के पद पर सन् १९४१ में अभिषिक्त किया और उन्हीं पर पीठ के पुनरुद्धार का महान् कार्य सौंपा गया।
- स्वामी ब्रह्मानन्द जी ने दिव्य नदी नर्मदा जी की तीन बार परिक्रमा की है और नर्मदा उद्गम स्थान अमरकण्टक से लेकर रत्नासागर संगम तक अमरकण्टक, ओंकारेश्वर, महेश्वर, सहस्त्रधारा, शुक्लतीर्थ, कोटि तीर्थ, भार-भूतेश्वर पर सेवा केन्द्र है।
- प्रयास में सफलता मिली और अनन्त श्री विभूषित स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज को सब प्रकार से सुयोग्य और समर्थ जानकर उन्हें शङ्कराचार्य के पद पर सन् १९४१ में अभिषिक्त किया और उन्हीं पर पीठ के पुनरुद्धार का महान् कार्य सौंपा गया।