सर्जनात्मक लेखन sentence in Hindi
pronunciation: [ serjenaatemk lekhen ]
"सर्जनात्मक लेखन" meaning in English
Examples
- क्या हिन्दी के पुरुष लेखक जो-जो कुछ लिखते आए हैं, लिख चुके हैं या लिख रहे हैं, वह सब उनके अपने जीवन के विवरण हैं? सर्जनात्मक लेखन को ' फिक्शन ' इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वह कल्पना से प्रसूत होता है।
- लेकिन इसके लिए परिवार के सदस्यों में यह भावना और चेतना उत्पन्न करना आवश्यक है कि सर्जनात्मक लेखन और साहित्यिक पत्रकारिता सांसारिक दृष्टि से भले ही मूर्खता, पागलपन या घाटे का सौदा हो, अपने बौद्धिक तथा सर्जनात्मक व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है।
- उपसर्ग में पहुँचना, संसर्ग में पहुँचना॥ सारी पहुँच के ऊपर बस एक पहुँच यारो-सुवर्ग में पहुँचना, है “स्वर्ग” में पहुँचना॥” असंतोष से ही सर्जनात्मक लेखन संभव: चित्रा चित्रा मुद्गल से चंदन राय की बातचीत आपने बचपन में एक बार अम्मा से शेर की खाल मांगी थी, लेकिन मिला आपको बप्पा
- यह सवाल तब किए गए जब यह पंक्तिलेखक पी. पी. टी. प्रजेन्टेशन के लिए 12 स्लाइड्स अंग्रेजी-हिन्दी मिश्रित भाषा में इस विषयवस्तु को आधार बनाकर प्रस्तुत था कि 21 वीं शताब्दी में नानाविध चुनौतियों और संकटों से घिरी पत्रकारिता को सर्जनात्मक लेखन से जोड़े जाने की आवश्यकता क्योंकर है?
- सर्जनात्मक लेखन भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाने में योगदान देने वाले रचनाकारों के प्रदेयों का परिचय साहित्यिक संसार को कराने की पहल के अंतर्गत युग मानस द्वारा उनके साहित्य का डिजिटलीकरण एवं वेबसाइटों के माध्यम से दुनियाभर के पाठकों को साहित्य सुलभ कराने का प्रयास युग मानस द्वारा किया जा रहा है ।
- हमारी बौध्दिक संस्कृति में समाज कर्म और संस्कृति चिंतन के बीच एक दुर्लंघ्य खाई मान ली गई है | जो ' काम' करतें हैं, वे चिंतन से लेकर कविता तक को बौध्दिक ऐयाशी मानते हैं | जो सर्जनात्मक लेखन या चिंतन करते हैं, वे किसी अपील या वक्तव्य पर हस्ताक्षर कर देने को ही बहुत बड़ा ' सामाजिक कर्म' मानकर निश्चिंत हो जाते हैं | समाज कर्म को बौध्दिक दरिद्रता ही अपनी ताकत लगती है;
- हमारी बौध्दिक संस्कृति में समाज कर्म और संस्कृति चिंतन के बीच एक दुर्लंघ्य खाई मान ली गई है | जो ' काम ' करतें हैं, वे चिंतन से लेकर कविता तक को बौध्दिक ऐयाशी मानते हैं | जो सर्जनात्मक लेखन या चिंतन करते हैं, वे किसी अपील या वक्तव्य पर हस्ताक्षर कर देने को ही बहुत बड़ा ' सामाजिक कर्म ' मानकर निश्चिंत हो जाते हैं | समाज कर्म को बौध्दिक दरिद्रता ही अपनी ताकत लगती है ;
- इस संदर्भ में महान कहानीकार चेखोव का यह कथन याद रखने लायक है कि ‘‘ यदि आप यह नहीं मानते कि सर्जनात्मक लेखन में किसी समस्या को हल करने अथवा किसी उद्देश्य तक पहुँचने का भाव रहता है, तो आप यह मानने को मजबूर होंगे कि कलाकार पहले से कुछ भी सोचे-समझे बिना रचना कर डालता है ; कि वह सोच-समझकर और एक इरादे के साथ काम नहीं करता, बल्कि जो उसके जी में आता है, कर डालता है।
- लेकिन सर्जनात्मक लेखन (उपन्यास, नाटक, कहानियाँ) के अतिरिक्त भाषा, संस्कृति, समाज और सत्ता के अन्तर्सम्बन्धों पर, और विशेषकर औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक समाजों में साम्राज्यवादी वर्चस्व (या जनसमुदाय के मानसिक उपनिवेशन के लिए) के सुदृढ़ीकरण के लिए भाषा, संस्कृति और शिक्षा के इस्तेमाल पर न्गूगी ने जो चिन्तन और लेखन किया है, उसके नाते उन्हें बीसवीं शताब्दी के अग्रतम सांस्कृतिक और भाषाशास्त्रीय चिन्तकों की पंक्ति में निर्विवाद रूप से शामिल किया जा सकता है।