विद्वत समाज sentence in Hindi
pronunciation: [ videvt semaaj ]
"विद्वत समाज" meaning in English
Examples
- उधर अपनी बिदुषी पत्नी और अयोध्या के स्वयंभू विद्वत समाज द्वारा ठुकराए गए एक वीरान महज़िद में वनवास भोगते तुलसीदास ने नाना पुराणों को खंगाल कर वनवास भोगते अपने प्रिय देवताओं राम-लक्ष्मण-सीता को खोज ही डाला ।
- उधर अपनी बिदुषी पत्नी और अयोध्या के स्वयंभू विद्वत समाज द्वारा ठुकराए गए एक वीरान महज़िद में वनवास भोगते तुलसीदास ने नाना पुराणों को खंगाल कर वनवास भोगते अपने प्रिय देवताओं राम-लक्ष्मण-सीता को खोज ही डाला ।
- हड़प्पा सभ्यता और वैदिक सभ्यता को एक ही मानने वाले भगवान सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के गणितज्ञ, विद्वत समाज में समादृत संस्कृतज्ञ एवं प्रसिद्ध मार्क्सवादी इतिहासकार दामोदर धर्मानंद कोसंबी पर एक पुस्तक लिखी है ‘ कोसंबी: कल्पना से यथार्थ तक ' ।
- अतएव, जनता जनार्दन एवं विद्वत समाज से मेरा निवेदन है कि-उक्त विवाद के लम्बित रहने तक ईश्वर के अस्तित्व को मान्यता दी जाय अर्थात् जब तक उसे पूर्णतया असिद्ध नहीं कर दिया जाता तब तक उसके अस्तित्व को स्वीकार किया जाय और अन्यथा
- इसी के बल पर हिंदी जब तत्सम से सजती-संवरती है तो विद्वत समाज की जुबान बनती है, उर्दू से मिल कर भारतीय उपमहाद्वीप के कोने-कोने में बोली-समझी जाती है और देसी भाषाओं और बोलियों के शब्दों को अपना कर देश-दुनिया के सुदूर क्षेत्रों में जानी-पहचानी जाती है।
- सभी अभ्यासु भाइयों / बहनों, एवँ मंच के सभी विद्वत समाज से अनुरोध है कि अगर उनके पास वेद माता का आशीर्वाद यह उपनिषद अगर नहीं है तो कृपया उसे क्रय करें और प्रत्येक सप्ताह मे दो दिन चलने वाले इस यज्ञ कार्य मे अपना योग्यदान अवश्य करें...
- उन्होंने महर्षि बाल्मीकि का उदाहरण देते हुए कहा कि कवि को कभी नहीं पता होता कि वह जो लिखने जा रहा है, उसका स्वरूप क्या होगा, वह तो केवल अनुभूत को अभिव्यक्त करता है, बाद में विद्वत समाज इस बात का आकलन करता है कि अमुक कृति को किस वर्ग में रखा जाए।
- आखिर में पं. केशवदेव शास्त्री की स्मृति में कवि अशोक अज्ञ ने ‘ केशवदेव शास्त्री जी विद्वान की खान थे, भक्ति ज्ञान मार्ग की विशेष पहचान थे, गुरू की कृपा सों करते ज्ञान का प्रकाश थे, विद्वत समाज बीच चमके मयंक … ' रचना प्रस्तुति देकर सभी को गदगद कर दिया।
- उन्होंने महर्षि बाल्मीकि का उदाहरण देते हुए कहा कि कवि को कभी नहीं पता होता कि वह जो लिखने जा रहा है, उसका स्वरूप क्या होगा, वह तो केवल अनुभूत को अभिव्यक्त करता है, बाद में विद्वत समाज इस बात का आकलन करता है कि अमुक कृति को किस वर्ग में रखा जाए।
- अतएव, जनता जनार्दन एवं विद्वत समाज से मेरा निवेदन है कि-उक्त विवाद के लम्बित रहने तक ईश्वर के अस्तित्व को मान्यता दी जाय अर्थात् जब तक उसे पूर्णतया असिद्ध नहीं कर दिया जाता तब तक उसके अस्तित्व को स्वीकार किया जाय और अन्यथा कोई बात प्रचारित करके भ्रम फैलाने से गैर विश्वासियों को रोका जाय।”