पे्रमचंद sentence in Hindi
pronunciation: [ peremchend ]
Examples
- इस पुस्तक में रणसुभे जी ने अपनी प्रखर और संतुलित आलोचना दृष्टि से पे्रमचंद और दलित प्रश्न, भारतीय दलित साहित्य की अवधारणा तथा दलित साहित्य की दशा-दिशा के साथ-साथ उसके भविष्य पर भी विचार किया है।
- १ ९ ० ५ में पटना जिले में जन्में गंगा जी आजादी के दौर में जहंा देश के चर्चित राजनेताओं के संपर्क में रहे वहीं साहित्यिक क्षेत्र में महादेवी वर्मा, पे्रमचंद, निराला के साथ भी रहे।
- सरकार में कुछ विभागों को अधिक महत्वपूर्ण मान लिया जाता है उनके बारे में कभी आला अफसरों से बात होती है तो कोई भी सामाजिक यथार्थ, गांधीवाद, पे्रमचंद या गरीबी के अर्थशास्त्र को पढने समझाने की जरूरत नहीं समझाता।
- बदली हुई परिस्थितियों में पे्रमचंद की रचनाओं का ही नहीं पूरे हिंदी साहित्य का पुनर्पाठ और पुनर्मूल्यांकन होना चाहिए, क्योंकि इस प्रक्रिया में ही सार्थक और निरर्थक का चयन सम्भव हो पाता है और कालजयी रचनाएं अपनी प्रासंगिकता प्रमाणित करती हैं।
- कटोरी में रखे पानी से तालाब की लहरों या पारदर्शी गहराई की अनुभूति नहीं पायी जा सकती, लेकिन दियासलाई की ज्वाला में वही दीप्त गर्मी और अंधेरे के नाश की क्षमता होती है जो पे्रमचंद की ÷पूस की रात' की आग में है।
- भारतीय नवजागरण और स्वाधीनता आंदोलन के विकास की धारा के भीतर के अतरविरोधों के संदर्भ में शरतचंद्र, पे्रमचंद, निराला, नजरूल, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस आदि साहित्यकारों और क्रांतिकारियों का सही मूल्यांकन आज तक भी नहीं हो पाया है।
- यह वास्तव में विचारणीय है कि पे्रमचंद, निराला और रेणु अपने कथा-साहित्य के माध्यम से जहां वर्ग में रूपांतरण की प्रक्रिया उद्घाटित करते हैं, वहीं डाॅ. रामविलास शर्मा वर्ग-दृष्टि का इस्तेमाल जाति एवं वर्ण आधारित शोषण को नकारने के लिये क्यों करते हैं?
- डाॅ. धर्मवीर ने दो बातों पर अपनी आपत्ति जताई है, पहली तो यह कि प्रेमचंद कायस्थ यानि सवर्ण हिन्दू थे तो उन्हें सवर्णों पर कहानी लिखनी चाहिए थी, पे्रमचंद ने यह क्यों लिखा कि ‘ चमारों का कुनबा था और सारे गंाव में बदनाम।
- जोसेफ मेकवान ने उन्हें आड़े हाथों लिया, ‘ यदि इन महोदय की स्थापनाएं सही मानें तो पे्रमचंद के समूचे साहित्य सृजन से लेकर अमृतलाल नागर के ‘ बूंद और समुंद्र ', रेणु के ‘ मैला आंचल ', मंटो की कहानियां और यशपाल को साहित्य से निष्कासन देना पड़ेगा।
- यह अनायाय नहीं है कि पे्रमचंद पर एक संपूर्ण पुस्तक लिखते हुए भी वे ‘ सद्गति ', ‘ ठाकुर का कुंआ ', ‘ सवा सेर गेहूं ', ‘ बाबाजी का भोग ' सरीखी कहानियों और ‘ गोदान ' के सिलिया-मातादीन के उस दलित प्रसंग की चर्चा नहीं करते जिनमें जाति आधारित शोषण और वर्णाश्रमी व्यवस्था की संरचना उजागर होती है।