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पुरोडाश sentence in Hindi

pronunciation: [ purodaash ]
"पुरोडाश" meaning in Hindi  

Examples

  1. ऐसे यज्ञ से जो क्षमता उत्पन्न होती है, वह इतनी ही होती है कि एक व्यक्ति के लायक ' पुरोडाश ' बना सके ' अथवा एक महिला के लिए ' चरु ' उपलब्ध हो सके।
  2. इतना ही नहीं गीता ३-१ ३ एवं ४-३ १ के अनुसार तो यज्ञ से बना हुआ यज्ञावशिष्ट अर्थात् चरु या पुरोडाश खाने वाला सर्व पापों से छूट जाता है तथा सनातन ब्रह्म को प्राप्त करता है।
  3. ४. यदि राज्य अपराधियों को दंड नहीं देगा तो कौवा पुरोडाश खाने लगेगा, श्वान हवि खा जायेगा और कोई किसी को स्वामी नहीं मानेगा और समाज उत्तम स्थिति से मध्यम और उसके बाद अधम होकर व्यवस्थाहीन हो जायेगा.
  4. आयुर्वेद में वर्णित जो वनौषाधियाँ जिस रोग के लिए गुणकारी मानी गयी हैं, उन्हें पुरोडाश या चरु के साथ मिलाकर हवनकुंड या वेदी पर पका लेने पर यज्ञीय ऊर्जा समाविष्ट हो जाने के कारण उनकी क्षमता अनेक गुनी अधिक बढ़ जाती है।
  5. ' [109] शतपथ ब्राह्मण [110] ने पिता, पितामह एवं प्रपितामह को पुरोडाश (रोटी) देते समय के सूक्तों का उल्लेख किया है और कहा है कि कर्ता इन शब्दों को कहता है-"हे पितर लोग, यहाँ आकर आनन्द लो, बैलों के समान अपने-अपने भाग पर स्वयं आओ'।
  6. ' कैमर पूजै सैंगरखांइ ' कहावत के आशय से यह भी सिद्ध होता है कि त्रेता द्वापर युगों के समय में ये सैंगर (शमीवृक्ष) की फली, सैंगरफरी को सुखाकर उनका आहार में पुरोडाश (हलुआ लापसी) बनाकर प्रयोग करते थे ।
  7. नरमेघ यज्ञ के हवनकुंड का पुरोडाश, कुछ और नहीं! अस्तित्व तुम्हारा प्यादे का, क्यों करते इसपर गौर नहीं! भारत हो जाए खंड-खंड, उत्कर्ष धूल में मिल जाये! गंगा की पावन धारा में, हालाहल तीखा घुल जाये!!.
  8. हिंदी में भावार्थ-अगर राज्य अपनी प्रजा को बचाने के लिये अपराधियों को दंड नहीं देता तो कौआ पुरोडाश खाने लगेगा, श्वान हवि खा जायेगा और कोई किसी को स्वामी नहीं मानेगा अंततः समाज पहले उत्तम से मध्यम और फिर अधम स्थिति को प्राप्त होगा।
  9. [107] शतपथ ब्राह्मण [108] ने पिता, पितामह एवं प्रपितामह को पुरोडाश (रोटी) देते समय के सूक्तों का उल्लेख किया है और कहा है कि कर्ता इन शब्दों को कहता है-” हे पितर लोग, यहाँ आकर आनन्द लो, बैलों के समान अपने-अपने भाग पर स्वयं आओ ' ।
  10. इससे जहाँ यज्ञ में आहुति दी गई औषधियों की सुंगध एवं ऊर्जा नासिका तथा रोमकूपों द्वारा प्रविष्ट होकर शरीर में आवश्यक तत्त्वों की अभिवृद्धि में सहायक होती थी, वहीं उन औषधियों के मिश्रण से बने पुरोडाश और चरु यज्ञावशिष्ट के रूप में खाने से याज्ञिकों में जीवनी शक्ति के अभिवर्धन के साथ ही संतानोत्पादक तत्त्वों की कमी की भी पूर्ति हो जाती थी।
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