उत्तररामचरित sentence in Hindi
pronunciation: [ utetreraamecherit ]
Examples
- उत्तररामचरित (1913 ई.), कादंबरी (2 भाग, 1911 तथा 1918), हर्षचरित (2 भाग, 1918 तथा 1921), हिंदुओं के रीतिरिवाज तथा आधुनिक विधि (3 भाग, 1944), संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास (1951) तथा धर्मशास्त्र का इतिहास (4 भाग, 1930-1953 ई.)
- पर जानकी का परित्याग करने के बाद राम किस कदर टूट गए थे और उन्हें सीता की छाया का अहसास भी कितना सकून देता था, इसी का नाम है भवभूति का उत्तररामचरित और खासकर उसका तीसरा अंक।
- रा. ना.वि. के ग्रीष्मकालीन नाट्य महोत्सव के नाटकों पर लिखने की अगली कड़ी में आज भवभूति द्बारा रचित और प्रसन्ना द्बारा निर्देशित नाटक “उत्तररामचरित” के बारे में कुछ. उत्तररामचरित का संस्कृत से हिंदी अनुवाद 'पंडित सत्यनारायण कविरत्न' ने किया है.कविरत्न...
- रा. ना.वि. के ग्रीष्मकालीन नाट्य महोत्सव के नाटकों पर लिखने की अगली कड़ी में आज भवभूति द्बारा रचित और प्रसन्ना द्बारा निर्देशित नाटक “उत्तररामचरित” के बारे में कुछ. उत्तररामचरित का संस्कृत से हिंदी अनुवाद 'पंडित सत्यनारायण कविरत्न' ने किया है.कविरत्न
- प्रकृतिक दृश्यों को अंकित करने में प्रचीन भारतीय चित्रकार कितने निपुण होते थे, इसका कुछ आभास भवभूति के उत्तररामचरित के देखने से मिलता है, जिसमें अपने सामने लाए हुए वनवास के चित्रों को देख सीता चकित हो जाती हैं ।
- प्रकृतिक दृश्यों को अंकित करने में प्रचीन भारतीय चित्रकार कितने निपुण होते थे, इसका कुछ आभास भवभूति के उत्तररामचरित के देखने से मिलता है, जिसमें अपने सामने लाए हुए वनवास के चित्रों को देख सीता चकित हो जाती हैं ।
- उत्तर काण्ड की दूसरी कथा (यह भी उत्तररामचरित नाटक में है) में एक ब्राह्मण के पुत्र की मृत्यु हो जाती है, वह ब्राह्मण अहंकारपूर्ण शब्दों में राजा राम को उसके लिये दोषी ठहराता है कि उनके राज्य में कोई शूद्र तपस्या कर रहा है।
- जैसे घनीभूत वाष्प कभी धारासार वर्षा में तो कभी बादल के फट पड़ने की और उसमें पर्वतों के धसक जाने की स्थिति निर्मित होती है, वैसे ही ‘ उत्तररामचरित ' की करुणा-सीता-राम की पीड़ा ने पत्थर तक को अपने संग रोने के लिए-फट पड़ने के लिए विवश-सा कर दिया है-जो शेक्सपियर की त्रासदी नहीं कर सकी।
- स्वातन्त्र्योत्तर युग अथवा बीसवीं शताब्दी के पाँचवें दशक से लेकर 21वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक हबीब तनवीर ने हिन्दुस्तानी साहित्य और रंगमंच को करीब दो दर्जन नाट्य कृतियाँ दी हैं जिनमें आगरा बाज़ार (1954), शतरंज के मोहरे (1954), लाला शोहरत राय (1954), मिट्टी की गाड़ी (शूद्रक रचित ‘मृच्छकटिकम‘ पर आधारित,1977), चरणदास चोर (1975), उत्तररामचरित (1977), बहादुर कलारिन (1978), पोंगा पण्डित (1990), ज़हरीली हवा (2002) और राजरक्त (2006) इत्यादि ख़ासे प्रसिद्ध हैं।