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ईशोपनिषद् sentence in Hindi

pronunciation: [ eeshopenised ]
"ईशोपनिषद्" meaning in Hindi  

Examples

  1. ईशोपनिषद् द्वारा उद्धाटित किया गया यह परम रहस् य व् यक्ति तथा समाज दोनों ही के लिए इतना कल् याणकारी है जिसकी समानता किसी भी दूसरे रहस् य से या मंत्र से नहीं हो सकती।
  2. ईशोपनिषद् में भक्त समस्त प्राणिमात्र का पोषण करने वाले सत्य स्वरूप सर्वेश्वर, जगदाधार परमेश्वर से कहता है कि हे सत्य स्वरूप! आपका श्रीमुख स्वर्णिम, ज्योतिर्मय सूर्य मण्डल रूप पात्र से ढका हुआ है।
  3. मेरी प्रार्थना के आरंभ में प्रतिदिन ईशोपनिषद् के प्रथम श्लोक का पाठ होता है जिसका भावार्थ यह है कि प्रत्येक वस्तु पहले ईश्वर को अर्पण करो और उसके उपरांत अपनी आवश्यकता के अनुसार उसमें से लेकर इस्तेमाल करो।
  4. दैव जाने अनात्मवादी बुद्ध-शिष्यों की आत्मा को ईशोपनिषद् सुनकर कैसा लगा होगा! और पूना से जब शिवनेरी गया, तब मसजिद की ऊंची दीवारों की सीढ़ियां चढ़कर दूर से श्री शिवाजी महाराज के बाल्यकाल की क्रीड़ा भूमि के दर्शन करते समय न मालूम क्यों मांडुक्योपनिषद गाना मुझे ठिक लगा था।
  5. हमारी संस् कृति में ईशोपनिषद् का बड़ा महत् व है और उसमें जो यह कहा गया है कि ” यह सब कुछ जो इस जगत् में हमें दृष्टिगोचर होता है, ईश् वर से ओतप्रोत है (वह मृत या जड़ या तिरस् करणीय नहीं है) ; अत: हमारा जो भी भोग हो वह त् यागपूर्वक किया जाना चाहिए।
  6. एक बार दासगणु जी महाराज ने ईशोपनिषद् पर ' ईश्वास्य-भावार्थ-बोधिनी टीका' लिखनी शुरू की| इस ग्रंथ पर टीका लिखना वास्तव में बहुत ही कठिन कार्य है| दासगणु ने ओवी छंदों में इसकी टीका तो की, पर सारतत्व उनकी समझ में नहीं आया| टीका लिखने के बाद भी उन्हें आत्मसंतुष्टि नहीं हुई| अपनी शंका के समाधान के लिए उन्होंने अनेक विद्वानों से परामर्श किया, परन्तु उसका कोई समाधान नहीं हो सका|
  7. एक बार दासगणु जी महाराज ने ईशोपनिषद् पर ' ईश्वास्य-भावार्थ-बोधिनी टीका ' लिखनी शुरू की | इस ग्रंथ पर टीका लिखना वास्तव में बहुत ही कठिन कार्य है | दासगणु ने ओवी छंदों में इसकी टीका तो की, पर सारतत्व उनकी समझ में नहीं आया | टीका लिखने के बाद भी उन्हें आत्मसंतुष्टि नहीं हुई | अपनी शंका के समाधान के लिए उन्होंने अनेक विद्वानों से परामर्श किया, परन्तु उसका कोई समाधान नहीं हो सका |
  8. हम यह बात तो आसानी से समझ सकते हैं कि यदि ईशोपनिषद् की इस सलाह पर हमारा समाज अमल करे और प्रत् येक व् यक्ति सामने आये हुए और अधिकारपूर्वक प्राप् त हुए भोग् य पदार्थ या भोग् य साधन संपदा में से ” कुछ ” का स् वेच् छा से परित् याग कर दे तो उससे समाज के दुर्बल वर्ग का कल् याण आसानी से हो सकता है तथा समाज की अनेकानेक समस् याऍं सरलता से एवं बिना सरकारी दंड के हस् तक्षेप के हल हो सकती हैं।
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