आदर्शोन्मुख यथार्थवाद sentence in Hindi
pronunciation: [ aadershonemukh yethaarethevaad ]
Examples
- ) क्या उन्हें नहीं मालूम होगा कि प्रेमचंद के आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को हिंदी के कहानी-समीक्षक यथार्थवाद नहीं मानते और इस कहानी में उसे देखकर इसे भी यथार्थवादी कहानी नहीं मानेंगे?
- मेरा अपना मानना है कि प्रेमचंद के आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की सही समझ विकसित की जाये, तो उससे हिंदी कथासाहित्य और कथा-समीक्षा दोनों को अपने विकास की सही समझ और दिशा प्राप्त हो सकती है।
- हिंदी में प्रेमचंद ने आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की अवधारणा के जरिये तथा मुक्तिबोध ने ज्ञानात्मक संवेदन और संवेदनात्मक ज्ञान की अपनी कोटियों के जरिये यही दावा पेश किया था और अपनी रचनाओं में चरितार्थ भी किया था।
- उसके इस प्रकार बदलते रहने के कारण ही उसके विकासमान स्वरूप का संकेत करने वाले उसके विभिन्न नामकरण होते रहते हैं, जैसे-प्रकृतवाद, आलोचनात्मक यथार्थवाद, आदर्शोन्मुख यथार्थवाद, समाजवादी यथार्थवाद और अब भूमंडलीय यथार्थवाद।
- मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि प्रेमचंद ' आदर्श ' और ' यथार्थ ' को परस्पर विरोधी नहीं मानते थे और उन्होंने ‘ नग्न यथार्थवाद ' के विरुद्ध ‘ आदर्शोन्मुख यथार्थवाद ' की स्थापना की थी ।
- उल्लेखनीय है की प्रेमचंद के आरंभिक उपन्यास / कहानियां आदर्शोन्मुख यथार्थवाद से प्रभावित / प्रेरित रहीं लेकिन शनैः शनैः उनका इस आदर्शवादिता से मोह भंग हो गया | इसे उनकी दो रचनाओं के हवाले से जाना जा सकता है
- आदर्शवाद, आदर्शोन्मुख यथार्थवाद, और अन्ततः अन्तिम गन्तव्य यथार्थवाद ; जबकि सच यह है कि तथाकथित आदर्शवादी दौर में भी वे यथार्थवादी रचनाएँ कर रहे थे और उनकी यथार्थवादी रचनाओं में भी कोई अन्तर्निहित आदर्शवादी स्वर गुँथा हुआ मिलता है।
- इससे आगे बढ़कर यह भी कहा जा सकता है, और ऐसा कहना उनके उपन्यासों का विश्लेषण करने पर अतिकथन नहीं लगेगा, कि उनका ' आदर्शोन्मुख यथार्थवाद ' वस्तुत: ' आलोचनात्मक यथार्थवाद ' की धारणा के अधिक निकट है ।
- फिर, यदि अकेले विमल ने ही अपना संबंध प्रेमचंद की आदर्शोन्मुख यथार्थवाद वाली परंपरा से जोड़ा है, तो भी कहानी-समीक्षक के लिए यह एक विशेष और महत्त्वपूर्ण बात होनी चाहिए थी, जिस पर उसे विशेष ध्यान देना चाहिए था।
- भूमंडलीय यथार्थवाद की अवधारणा को विकसित करते समय मुझे प्रेमचंद के आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को फिर एक बार नये सिरे से समझने की जरूरत महसूस हुई और इस सिलसिले में उनकी कई रचनाएँ पढ़ते समय मुझे लगा कि जैसे मैं उन्हें पहली ही बार पढ़ रहा हूँ।