अमरजीत कौंके sentence in Hindi
pronunciation: [ amerjit kaunek ]
Examples
- 098142-31698 तुम्हारी देह जितना / अमरजीत कौंके देखे बहुत मैंने मरुस्थल तपते सूरज से अग्नि के बरसात होती देखी कितनी बार बहुत बार देखा खौलता समुंदर भाप बन कर उड़ता हुआ देखे ज्वालामुखी पृथ्वी की पथरीली तह तोड़ कर बाहर निकलते रेत मिटटी पानी हवा सब देखे मैंने तपन के अंतिम छोर पर लेकिन तुम्हारी देह को छुआ जब महसूस हुआ तब कि कहीं नहीं तपन इतनी तुम्हारी काँची देह जितनी रेत न मिटटी पानी न पवन कहीं कुछ नहीं तपता तुम्हारी देह जितना......
- एक उदाहरण, जब मैंने भूख को भूख कहा प्यार को प्यार कहा तो उन्हें बुरा लगा जब मैंने पक्षी को पक्षी कहा आकाश को आकाश कहा वृक्ष को वृक्ष और शब्द को शब्द कहा तो उन्हें बुरा लगा परन्तु जब मैंने कविता के स्थान पर अकविता लिखी औरत को सिर्फ़ योनि बताया रोटी के टुकड़े को चांद लिखा स्याह रंग को लिखा गुलाबी काले कव्वे को लिखा मुर्गाबी तो वे बोले-वाह! भई वाह!! क्या कविता है भई वाह!!-अमरजीत कौंके
- 098142 31698 कुछ नहीं होगा / अमरजीत कौंके कुछ नहीं होगा / अमरजीत कौंके सब कुछ होगा तुम्हारे पास एक मेरे पास होने के अहसास के बिना सब कुछ होगा मेरे पास तुम्हारी मोहब्बत भरी इक नज़र के सिवा ढँक लेंगे हम पदार्थ से खुद को इक सिरे से दुसरे सिरे तक लेकिन कभी महसूस कर के देखना कि सब कुछ होने के बावजूद कुछ नहीं होगा हमारे पास उन पवित्र दिनों की मोहब्बत जैसा जब मेरे पास कुछ नहीं था जब तुम्हारे पास कुछ नहीं था.......
- 098142 31698 कुछ नहीं होगा / अमरजीत कौंके कुछ नहीं होगा / अमरजीत कौंके सब कुछ होगा तुम्हारे पास एक मेरे पास होने के अहसास के बिना सब कुछ होगा मेरे पास तुम्हारी मोहब्बत भरी इक नज़र के सिवा ढँक लेंगे हम पदार्थ से खुद को इक सिरे से दुसरे सिरे तक लेकिन कभी महसूस कर के देखना कि सब कुछ होने के बावजूद कुछ नहीं होगा हमारे पास उन पवित्र दिनों की मोहब्बत जैसा जब मेरे पास कुछ नहीं था जब तुम्हारे पास कुछ नहीं था.......
- काश मेरा प्यार तुम पर इस तरह बरसता है जैसे किसी पत्थर पर लगातार कोई झरना गिरता है काश तुम्हे कभी बारिश में किसी वृक्ष की भाँति भीगने की कला आ जाये डॉ अमरजीत कौंके की कविता उनकी पुस्तक अंतहीन दौड़ से साभार साथ ही आबिदा जो हर समय भली लगतीं हैं इस दौर में क्या क्या है रुसवाई भी लज़्ज़त भी काँटा हो तो ऐसा हो चुभता हो तो ऐसा हो हमसे नही रिश्ता भी हमसे नही मिलता भी है पास वो बैठा भी धोखा हो तो ऐसा हो चित्र गूगल
- फिश एकुएरियम / अमरजीत कौंके उस की उम्र में तब आया प्यार जब उसके बच्चों के प्यार करने की उम्र थी तब जगे उस के नयनों में सपने जब परिंदों के घर लौटने का वक्त था उसकी उम्र में जब आया प्यार तो उसे फिश एकुएरियम में तैरती मछलिओं पर बहुत तरस आया फैंक दिया उसने फर्श पर कांच का मर्तवान मछ्लिओं को आजाद करने के लिए तड़प तड़प कर मरी मछलिआं फर्श पर पानी के बगैर वो बावरी नहीं थी जानती कि मछलिओं को आजाद करने के भ्रम में उसने मछलिओं पर कितना जुलम किया है......