सैरंध्री sentence in Hindi
pronunciation: [ sairendheri ]
"सैरंध्री" meaning in Hindi
Examples
- ' सैरंधी ' (सैरंध्री = द्रौपदी), ' गंगेऊ ' (गांगेय = भीष्म), ' पारथ ' ऐसे अप्रचलित शब्दों का जो कहीं-कहीं उन्होंने व्यवहार किया है वह इसी जानकारी के बल से न कि संस्कृत के अभ्यास के बल से।
- क्या देव और यह दानव क्या-कोई भी बच न पाया है-फिर तुम तो केवल इंसान हो-सब पर नियति का साया है होता न ऐसा तो पांडव क्यों दर दर भटके भेशों में-महारानी द्रौपदी क्यों बन गयी-सैरंध्री कीचक के देश में.
- बृहन्नला नामधारी अर्जुन ने उसकी बातें सुनीं, लेकिन वह चुप बैठा रहा | वह तो उस समय नपुंसक का रूप धारण किए हुए था | लेकिन सैरंध्री बनी द्रौपदी से न रहा गया | उसने कह-सुनकर अर्जुन को उत्तर का सारथ्य करने के लिए तैयार कर दिया |
- द्रौपदी के साथ पाण्डव वनवास के अंतिम वर्ष अज्ञातवास के समय में वेश तथा नाम बदलकर राजा विराट के य हां रहते थे | उस समय द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री रख लिया था और विराट नरेश की रानी सुदेष्णा की दासी बनकर वे किसी प्रकार समय व्यतीत कर रही थीं |
- विराट नरेश के यहाँ युधिस्ठिर कंक नामक ब्राहमण बने, भीम बल्लभ रसोइया, अर्जुन ने वृहन्नला बन राजकुमारी उत्तरा का गुरुपद सम्हाला तो नकुल ने ग्रंथिक के रूप में कोचवान की जिम्मेदारी ली, सहदेव अरिष्टनेमी के रूप में मवेशियों की देखभाल के लिए नियुक्त हुए, द्रौपदी सैरंध्री बन रानी की दासी नियुक्त हु ई.
- द्रौपदी का जन्म महाराज द्रुपद के यहाँ यज्ञकुण्ड से हुआ था | द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डव से हुआ था | कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री अदि अन्य नामो से भी ये विख्यात है | पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र (क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ती, शतानीक व श्रुतकर्मा) उप-पांडव नाम से विख्यात थे |
- दुरात्मा कीचक अपनी बहन रानी सुदेष्णा के भवन में एक बार किसी कार्यवश गया | वहां अपूर्व लावण्यवती दासी सैरंध्री को देखकर उस पर आसक्त हो गया | कीचक ने नाना प्रकार के प्रलोभन सैरंध्री को दिए | सैरंध्री ने उसे समझाया, “ मैं पतिव्रता हूं | अपने पति के अतिरिक्त किसी पुरुष की कभी कामना नहीं करती | तुम अपना पाप-पूर्ण विचार त्याग दो | ”
- दुरात्मा कीचक अपनी बहन रानी सुदेष्णा के भवन में एक बार किसी कार्यवश गया | वहां अपूर्व लावण्यवती दासी सैरंध्री को देखकर उस पर आसक्त हो गया | कीचक ने नाना प्रकार के प्रलोभन सैरंध्री को दिए | सैरंध्री ने उसे समझाया, “ मैं पतिव्रता हूं | अपने पति के अतिरिक्त किसी पुरुष की कभी कामना नहीं करती | तुम अपना पाप-पूर्ण विचार त्याग दो | ”
- दुरात्मा कीचक अपनी बहन रानी सुदेष्णा के भवन में एक बार किसी कार्यवश गया | वहां अपूर्व लावण्यवती दासी सैरंध्री को देखकर उस पर आसक्त हो गया | कीचक ने नाना प्रकार के प्रलोभन सैरंध्री को दिए | सैरंध्री ने उसे समझाया, “ मैं पतिव्रता हूं | अपने पति के अतिरिक्त किसी पुरुष की कभी कामना नहीं करती | तुम अपना पाप-पूर्ण विचार त्याग दो | ”
- मत्स्य-नरेश विराट यह सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हुए और उत्तर को आशीर्वाद देने लगे | चारों ओर उत्तर की वीरता के गुण गाए जाने लगे, लेकिन कंक नामधारी युधिष्ठिर ने इस पर विश्वास नहीं किया और उन्होंने विराट के सामने ही अपना संदेह प्रकट किया, जिससे क्रुद्ध होकर विराट ने उनके मुंह पर पासे दे मारे | मुंह से खून गिरने लगा, जिसे सैरंध्री ने एक बरतन में समेट लिया |