लक्ष्मीनारायण लाल sentence in Hindi
pronunciation: [ lekseminaaraayen laal ]
Examples
- लोहिया, अज्ञेय, विपिन अग्रवाल, विजयदेव नारायण शाही, मोहन राकेश, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, लक्ष्मीनारायण लाल, डा॰ धर्मवीर भारती, डा॰ रघुवंश, लक्ष्मीकांत वर्मा, जगदीश गुप्त जैसे व्यक्तियों की।
- डॉ. रामकुमार वर्मा, लक्ष्मीनारायण लाल, पं 0 उदयशंकर भट्ट, तथा उपेन्द्र नाथ अश्क आधुनिक युग के प्रमुख एकांकीकारों में गिने जाते हैं परन्तु पं 0 लक्ष्मीनारायण मिश्र का स्वर इन सबसे अलग रहा हे।
- ये हैं-नागार्जुन, भगवतीचरण वर्मा, विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर, शिवप्रसाद सिंह, शैलेश मटियानी, रमाकांत, कन्हैयालाल नन्दन, लक्ष्मीनारायण लाल, रमेश बतरा, प्रकाशक श्रीकृष्ण (पराग प्रकाशन), रत्नलाल शर्मा, शिवतोष दास और राष्ट्रबन्धु.
- उनके पूर्ववर्ती प्रयोगधर्मी नाट्यकारों-लक्ष्मीनारायण, जगदीशचन्द्र माथुर, उपेन्द्रनाथ अश्क, लक्ष्मीनारायण लाल, धर्मवीर भारती आदि जिन विश्वजनीन चेतना को अग्रसर किया था उसका विकास क्रम मोहन राकेश में देखा जा सकता है जिन्हें हम आधुनिक भाव बोध का नाम भी दे सकते हैं।
- बात १ ९ ८८ के आसपस की है. मैं स् व. डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल (वे मेरे एक रिश्तेदार के बचपन के मित्र थे और इसी नाते मैं उनके पास कभी कभी जाता था) के यहां बैठा था. एक फोन आया.
- फिर बाद के दौर में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डा. लक्ष्मीनारायण लाल, लक्ष्मीकांत वर्मा, डा. वागीश शुक्ल, डा. माहेश्वर तिवारी, श्याम तिवारी, अष्टभुजा शुक्ल, अल्पना मिश्र जैसे कई ऐसे नाम हैं, जिन्होंने बस्ती को एक अलग पहचान दी है।
- आज़ादी के बाद जिन हिन्दी नाटककारों ने साहित्य और रंगमंच की दुनिया को अपनी विविधवर्णी रचनात्मकता से समृद्ध किया उनमें जगदीश चन्द्र माथुर, लक्ष्मीनारायण लाल, सुरेन्द्र वर्मा, शंकर शेष, भीष्म साहनी, मुद्राराक्षस आदि के नाटक आज भी हिन्दी साहित्य की आलोचना के परिदृश्य पर अनुपस्थित हैं.
- दूसरा तथ्य यह कि “ मैं कुछ भी क्यों न बन सकूं लेकिन कवि कभी नहीं बन सकता ” यह बात डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल ने नहीं यतिंकिचित पढ़कर डॉ. हरिवंशराय बच्चन ने मुझे लिखी थी. डॉ. लाल ने कहा था, ” हर रचनाकार को अंतर्मथन करना चाहिए और देखना चाहिए कि वह क्या लिख सकता है.
- घर-बाहर ' (रवीन्द्रनाथ ठाकुर, 1961: श्यामानन्द जालान), ‘ छपते-छपते ' (मिहिल सेबेशियन, 1963: श्यामानन्द जालान), ‘ शेष रक्षा ' (रवीन्द्रनाथ ठाकुर, 1963: प्रतिभा अग्रवाल), ‘ मादा कैक्टस ' (लक्ष्मीनारायण लाल, 1964: श्यामानन्द जालान), ‘ छलावा ' (परितोष गार्गी, 1964: प्रतिभा अग्रवाल) एवं ‘ कांचन रंग ' (शंभु मित्र तथा अमित मैत्र, 1965: कृष्ण कुमार) नाटक प्रस्तुत किए गए।