मौलाए sentence in Hindi
pronunciation: [ maulaa ]
Examples
- इसमें मौलाए कायनात अमीरूल मोमेनीन (अ 0) के वह ख़ुतूत और तहरीरें दर्ज हैं जो आपने अपने मुख़ालेफ़ीन और अपने क़लमर्द के मुख़्तलिफ़ ‘ ाहरों के हाकमो के नाम भेजी हैं और इसमें कारिन्दों के ना जो हुकूमत के परवाने और अपने साहेबज़ादों और साथियों के नाम जो वसीयत नामे लिखे हैं याा हिदायतें की हैं, उनका इन्तेख़ाब भाी दर्ज है।
- (((-रसूले अकरम (स 0) के दौर में अब्दुल्लाह बिन उबी और मौलाए कायनात (अ 0) के दौर में अषअत बिन क़ैस जैसे अफ़राद हमेषा रहे हैं जो बज़ाहिर साहेबाने ईमान की सफ़ों में रहते हैं लेकिन इनका काम बातों का मज़ाक़ उड़ाकर उन्हें मुष्तबा बना देने और क़ौम में इन्तेषार पैदा कर देने के अलावा कुछ नहीं होता है।
- मौलाए कायनात (अ 0) ने इस हक़ीक़त का इज़हार मलाएका के कमाल के ज़ैल में फ़रमाया है लेकिन मक़सद यही है के इन्सान इस सूरते हाल से इबरत हासिल करे और अषरफ़ुल मख़लूक़ात होने का दावेदार है तो किरदार में भी दूसरी मख़लूक़ात के मुक़ाबले में अषरफ़ीयत का मुज़ाहेरा करे वरना दावाए बे दलील किसी मन्तिक़ में क़ाबिले क़ुबूल नहीं होता है।
- दर हक़ीक़त मौलाए कायनात ने इन फ़ोक़रात में मरने वालों के हालात का ज़िक्र नहीं किया है बल्कि ज़िन्दा अफ़राद को इस सूरते हाल से बचाने का इन्तेज़ाम किया है के इन्सान इस अन्जाम से बाख़बर है और चन्द रोज़ा दुनिया के बजाए अबदी आक़ेबत और आखि़रत का इन्तेज़ाम करे जिससे बहरहाल दो चार हाोना है और इससे फ़रार का कोई इमकान नहीं है।
- दूसरा फ़िक़रा इस बात की दलील है के बातिल खि़लाफ़त से मुकम्मल अद्ल व इन्साफ़ और सुकून व इत्मीनान की तवक़्क़ो मुहाल है लेकिन मौलाए कायनात (अ 0) का मनषा यह है के अगर ज़ुल्म का निषाना मेरी ज़ात होगी तो बरदाष्त करूंगा लेकिन अवामुन्नास होंगे और मेरे पास माद्दी ताक़त होगी तो हरगिज़ बरदाष्त न करूंगा के यह अहदे इलाही के खि़लाफ़ है।
- (((-बनी तमीम के सरदार अहनफ़ बिन क़ैस से खि़ताब है जिन्होंने रसूले अकरम (स 0) की ज़ेयारत नहीं की मगर इस्लाम क़ुबूल किया और जंगे जमल के मौक़े पर अपने इलाक़े में उम्मुल मोमेनीन के फ़ित्नों का दिफ़ाअ करते रहे और फिर जंगे सिफ़फ़ीन में मौलाए कायनात के साथ “ ारीक हो गए और जेहाद राहे ख़ुदा का हक़ अदा कर दिया।-)))
- तलाष कीजिये आज के दौर के साहेबाने तक़वा और मदअयाने परहेज़गारी की बस्ती में, कोई एक “ ाख़्स भी ऐसा जामेअ सिफ़ात नज़र आता है और किसी इन्सान के किरदार में भी मौलाए कायनात के इरषाद की झलक नज़र आती है, और अगर ऐसा नहीं है तो समझिये के हम ख़यालात की दुनिया में आबाद हैं और हमारा वाक़ेयात से कोई ताल्लुक़ नहीं है-)))
- (((-जिस तरह मालिक ने रसूले अकरम (स 0) को जाहेलीयत के अन्धेरे में सिराजे मुनीर बनाकर भेजा था उसी तरह फ़ितनों के अन्धेरों में मौलाए कायनात की ज़ात एक रौषन चिराग़ की है के अगर इन्सान इस चिराग़ की रौषनी में ज़िन्दगी गुज़ारे तो कोई फ़ित्ना उस पर असर अन्दाज़ नहीं हो सकता है और किसी अन्धेरे में उसके भटकने का इमकान नहीं है।
- (((-इस मुक़ाम पर मौलाए कायनात ने इस नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जो करना चाहा है के तक़वा का फ़ायदा सिर्फ़ आखि़रत तक महदूद नहीं है के तुम यहाँ गुनाहों से परहेज़ करो, मालिक वहां तुम्हें आतिषे जहन्नम से महफ़ूज़ कर देगा बल्कि यह तक़वा आखि़रत के साथ दुनिया के हर मरहले पर काम आने वाला है और किसी मरहले पर इन्सान को नज़रअन्दाज़ करने वाला नहीं है।
- की शहादत के सिलसिले में निकाल गए ताबूत के जुलूस में बहाबी आतंकवादियों के हमले की हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद कल्बे जवाद नक़वी नें कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए कहा कि मौलाए काएनात के ताबूत पर होने वाले हमला, कुछ महीनों पहले लखनऊ के वज़ीरगंज में मजलिस में हुए हमले के विषय में प्रशासन की लापरवाही की वजह से चरमपंथियों का हौसला बढ़ने की वजह से हुआ।