मणि मधुकर sentence in Hindi
pronunciation: [ meni medhuker ]
Examples
- इस संकलन के दस नाटककारों के नाम हैः मोहन राकेश, विपिन कुमार अग्रवाल, सुरेंद्र वर्मा, मणि मधुकर, रामेश्वर प्रेम, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, रमेश बक्षी, ललित मोहन थपल्याल, शांति मेहरोत्रा, शंभुनाथ सिंह।
- -मणि मधुकर (कविता संग्रह ' और हम ' की भूमिका में) राजस्थान साहित्य अकादमी के विशिष्ट साहित्यकार सम्मान १ ९ ८ ९-९ ० से सम्मानित योगेन्द्र किसलय ने राजस्थान की समकालीन कविता पर केंद्रित नंद चतुर्वेदी के संपादन के बाद दूसरे काव्य संकलन का सम्पादन भी किया।
- वाग्देवी पॉकेट बुक्स के अन्तर्गत अज्ञेय की कहानियों और निबन्धों, निर्मल वर्मा के निबन्धों और भवानीप्रसाद मिश्र की कविताओं तथा मणि मधुकर की कहानियों के प्रतिनिधि चयन के अतिरिक्त शीन काफ निजाम के साथ उर्दू शाइरों निदा फाजली, वजीर आगा, कुमार पाशी, मख्मूर सईदी एवं मुहम्मद अल्वी की प्रतिनिधि शाइरी तथा 'दीवाने-गालिब‘ और 'दीवाने-मीर‘ का सम्पादन ।
- वाग्देवी पॉकेट बुक्स के अन्तर्गत अज्ञेय की कहानियों और निबन्धों, निर्मल वर्मा के निबन्धों और भवानीप्रसाद मिश्र की कविताओं तथा मणि मधुकर की कहानियों के प्रतिनिधि चयन के अतिरिक्त शीन काफ निजाम के साथ उर्दू शाइरों निदा फाजली, वजीर आगा, कुमार पाशी, मख्मूर सईदी एवं मुहम्मद अल्वी की प्रतिनिधि शाइरी तथा ' दीवाने-गालिब ‘ और ' दीवाने-मीर ‘ का सम्पादन ।
- जब मैंने उनसे पूछा कि आगा ह्श्र मोहन राकेश, गिरीश कर्नाड, धर्मवीर भारती, सर्वेश्वरदयाल सक्सैना, मणि मधुकर, रेवतीशरण शर्मा और उर्मिलकुमार थपलियाल जैसे धाकड़ लेखकों की मौजूदगी के बाद भी हिन्दी नाटक वाले स्क्रिप्ट की रोना क्यों रोते रहते हैं नादिराजी ने कहा कि बेशुमार स्क्रिप्टस का उपलब्ध होना एक बात है और एक निर्देशक का उसमें अपने नजरिये से मंचन की संभावना तलाशना दूसरी बा त.
- नागार्जुन, मुद्राराक्षस, मणि मधुकर, राजकमल चौधरी, साढ़ोत्तरी पीढ़ी का साहित्य आंदोलन, अकविता, नक्सलबाड़ी, पुराने नामवर सिंह, शिवदान सिंह चौहान के समय की ‘ आलोचना ', शरद देवड़ा, प्रयाग शुक्ल, भगवान सिंह, ज्ञानोदय, शनीचर, पहले के राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, निराला, मतवाला, श्मशानी पीढ़ी, अज्ञेय, कुमारेन्द्र पारसनाथ सिंह यह सब उनकी चर्चाओं के विषय होते जिनमें मेरी भूमिका सिर्फ श्रोता की होती।
- महेंद्र भल्ला, मणि मधुकर, राजा दुबे और अहमद हमेश के हैदराबाद आने, काफी समय तक रहने और लगातार मेरी हौसलाअफजाई करने से मेरा हीनभाव ज़रूर किसी हद तक कम हुआ लेकिन एक अबूझ प्यास भी बढ़ी कि हिन्दीप्रदेश के उन रचनाकारों में से चंद को कम से कम देखूं तो सही और अगर वे घास डालें तो मेल-मुलाक़ात भी करुँ, जिनके नाम और रचनाओं का प्रशंसक-पाठक रहने से ही साहित्यजगत में मेरी घुसपैठ मुमकिन हुई थी.
- ' कब तक पुकारुँ ' में रांगेय राघव ने करनट नारी की चेतना को जिस बारीकी से आँका है, ' कगार की आग ' में हिमांशु जोशी ने गोमती के द्वारा जिस जीवट पहाड़ी नारी को प्रस्तुत किया है, पंकज विष्ट ने ' उस चिड़िया का नाम ' में लोकतत्त्व द्वारा पहाड़ी नारी की व्यथा को जिस प्रकार उजागर किया है या मणि मधुकर ने ' पिंजरे में पन्ना ' में पन्ना और रम्या में जिस चेतना को पिरोया है उसका अभी तक पूर्ण विकास नहीं हो पाया है।