जय संतोषी माँ sentence in Hindi
pronunciation: [ jey sentosi maan ]
Examples
- जय संतोषी माँ फ़िल्म के भक्ति गीतों ख़ासकर आरती के अलावा एक ग़ज़ल भी लोकप्रिय हुई जो शायद दीदार-ए-यार फ़िल्म से है और यह एक गीत तराना फ़िल्म से जिसकी चर्चा अब की जा रही है।
- और अगर हम पिच्चर विच्चर देख कर लौट रहे हों तो वो ' जय संतोषी माँ ' या ' सरकाई ल्यो खटिया ', ' धरती की कसम ' या कोई भोजपुरी टाईप की ना हो.
- राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके गीतकार स्वानंद किरकिरे ने यूँ तो परिणीता से लेकर जय संतोषी माँ जैसी विविध फ़िल्मों के लिए गीत लिखे हैं लेकिन वे मानते हैं कि लगे रहो मुन्ना भाई के लिए महात्मा गांधी पर गीत लिखना उनके करियर का सबसे मुश्किल काम था.
- उन्हीं दिनों की बात है न जब जय संतोषी माँ आई थी तो लोग श्रद्धावश पर्दे पर पैसे फेंककर अपनी भक्ति का इज़हार कर रहे थे, जैसे कि किसी आयटम गाने पर ख़ुश होकर वे हॉल में सिक्के फेंकते पाए जाते थे, गोया किसी तवायफ़ की महफ़िल में बैठे हों।
- उन्हीं दिनों की बात है न जब ‘ जय संतोषी माँ ' आई थी तो लोग श्रद्धावश पर्दे पर पैसे फेंककर अपनी भक्ति का इज़हार कर रहे थे, जैसे कि किसी आयटम गाने पर ख़ुश होकर वे हॉल में सिक्के फेंकते पाए जाते थे, गोया किसी तवायफ़ की महफ़िल में बैठे हों।
- यह अलग बात है कि उस समय के माँ-पिताओं को अपने लिए सत्यम-शिवम-सुंदरम, एक ही भूल या इंसाफ का तराजू या राम तेरी गंगा मैली अश्लील फिल्में नहीं लगती थीं ; लेकिन बच्चों के लिए वे जय संतोषी माँ ही निर्धारित करते थे. सोचिए! उस दौर के जीवित माँ-पिताओं पर क्या बीतता होगा जब उनकी आँखों के सामने ही उनके नाती-पोते “ मुन्नी बदनाम हुई ” या “ शीला की जवानी ” सुनते-देखते बड़े हो रहे हैं.
- _ “ जय संतोषी माँ ” और “ शोले ” राँची के सुजाता सिनेमा घर में साथ-साथ लगातार एक वर्ष तक हाउस फुल चलती रहीं और एक कीर्तिमान स्थापित हुआ! ' मिनी सुजाता ' में = “ जय संतोषी माँ! ” और ' सुजाता ' में “ शोले! ” बम्बई (अब-मुंबई) के मिनर्वा थियेटर (सिनेमा घर / हॉल) में “ शोले ” अपने रिलीज़ के बाद लगातार (पाँच) ५-साल तक निरंतर चली, जो एक रिकार्ड है!
- _ “ जय संतोषी माँ ” और “ शोले ” राँची के सुजाता सिनेमा घर में साथ-साथ लगातार एक वर्ष तक हाउस फुल चलती रहीं और एक कीर्तिमान स्थापित हुआ! ' मिनी सुजाता ' में = “ जय संतोषी माँ! ” और ' सुजाता ' में “ शोले! ” बम्बई (अब-मुंबई) के मिनर्वा थियेटर (सिनेमा घर / हॉल) में “ शोले ” अपने रिलीज़ के बाद लगातार (पाँच) ५-साल तक निरंतर चली, जो एक रिकार्ड है!
- नई सड़क पर सीधे जा रहे लहुराबीर और कबीरचौरा की तरफ कट रहे दोराहे पर लबे सड़क पीपल के पेड़ के नीचे एक चबूतरे पर बने छोटे से मंदिर के पास खड़े होकर मैं और मेरे सहयात्री इस बात पर उलझे थे कि किस राह चल कर चाय पी जाए और फिर अपने-अपने रास्ते निकला जाए की कानों में बहुत मद्धम सी आवाज़ पड़ी, ' जय संतोषी माँ. ' पलट कर देखा तो हमारे ठीक पीछे मंदिर की दीवार से सट कर उस पर लिखी इबारतों को ध्यान से निहारता एक अंगरेज दिखा.