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आफ़त में sentence in Hindi

pronunciation: [ aafet men ]
"आफ़त में" meaning in English  

Examples

  1. गोसांई बाबा भी दोपहर में एक घड़ी के लिए उगते थे और धूप-अगरबत्ती दिखा के लापता! आदमी तो आदमी पशु-पक्षी सब का प्राण भी आफ़त में था।
  2. लिहाज़ा सरगरदानी में मुबतिला हो जाते हैं गोया उनके दिल ऐसी आफ़त में मुबतिला होते हैं कि जिसमें सोचने और फ़िक्र करने की सलाहियत ख़त्म हो जाती है।
  3. यहाँ दिन में नीचे आधा-पौने किमी दूर नदी किनारे जाकर ही पानी भरकर लाया जा सकता था लेकिन ठन्ड़ी अंधेरी रात में कौन आफ़त में अपने पैर घुसेड़ता।
  4. जाओ बढ़ो, बिना हॉर्न बजाए,मुझे बाईं ओर सेएक इंच की भी दूरी दिए बिनाओवरटेक करोचलाओ अपनी गाड़ीसाँप की तरह रेंगते हुएकरो आगे उसेइधर से, उधर सेजान आफ़त में डालते हुए।
  5. देश के गड्ढे, मुसीबत हो गए हैं ससुरे, बच्चों की जान को आफ़त में हैं डाले अबे जरा उन्हें भी पकड के लाओ, ई ससुरे कौन हैं साले, गड्ढे खोदने वाले (बचिया को बाहर निकाल दो, फ़िर इन गड्ढों में दोषियों को डाल दो... आ ऊपर से बुलडोज़र फ़िरा दो...
  6. इसलिए अब मैं तेरे ही तक़द्दुस और रहमत का दामन पकड़कर तेरे सामने दुआ करता हूँ कि मुझमें और सनाउल्लाह में सच्चा फै़सला कर और वह जो तेरी निगाह में हक़ीक़त में फ़सादी और महाझूठा है उसको सच्चे की ही ज़िन्दगी में दुनिया से उठा ले या किसी और बड़ी आफ़त में जो मौत के बराबर हो सकती है (में ग्रस्त) कर।
  7. क्या कहोगे? एक महिला बता रही थी कि उसने लॉटरी में पच्चीस लाख रुपये जीते| बोली जिस दिन से पच्चीस लाख जीतने की खबर फैली है हमारी जान आफ़त में आ गई है| रोज फ़ोन आते हैं गुंडों के, दस मुझे दे, पाँच मुझे दे, पंद्रह मुझे दे नहीं तो तेरा बेटा उठा लेंगे, नहीं तो तुझे मार देंगे| बोली, हम तो घर से बाहर नहीं जा सकते| बोलिए ये लॉटरी निकलना अच्छा हुआ की बुरा?
  8. जब से कविता हिट हुई है तब से यही डर कविता करने वाली दूसरी ब्लॉगर्स के दिल में भी बैठ गया है कि जाने यह बुड्ढा कहीं उसी कविता की पिनक में तो यहां नहीं आ धमका? क्या ज़माना आ गया है कि नारियां कविता करने से पहले और उपमा देने से पहले सत्तर बार सोचती हैं कि इसके भाव ब्लॉगर्स के दिल में कितने गहरे उतरेंगे? कहीं ज़्यादा गहरे उतर गए तो जान आफ़त में आ जाएगी।
  9. साथ साथ अल्लाह भी क़ला बाज़ियां खाता रहता है---' ' और क्या उनको नहीं दिखाई देता कि यह लोग हर साल में एक बार या दो बार किसी न किसी आफ़त में फंसे रहते हैं, फिर भी बअज़ नहीं आते और न कुछ समझते हैं और जब कोई सूरह नाज़िल की जाती है तो एक दूसरे का मुंह देखने लगते हैं कि तुम को कोई देखता तो नहीं, फिर चल देते हैं, अल्लाह तअला ने इनका दिल फेर दिया है इस वजेह से कि वह महेज़ बे समझ लोग हैं.
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