अवधेश प्रीत sentence in Hindi
pronunciation: [ avedhesh perit ]
Examples
- अवधेश प्रीत आज भी पटना हिन्दुस्तान में हैं) इनमें से कई नाम ऐसे थे, जिनका नाम मुझे इतना बड़ा लगता था कि उनसे परिचय की तमन्ना लिए अखबारों के दफ्तर चला जाता था …
- अपने साथ कहानियां लिख रहे प्रियंवद, महेश कटारे, आनंद हर्षुल, शशांक, अवधेश प्रीत, योगेंद्र आहूजा, पंकज मित्र, संतोष दीक्षित आदि की रचनाओं के प्रति हमेशा उत्सुकता बनी रहती है.
- कहानियों मे कृपया शिवमूर्ति, संजीव व अखिलेश को अवश्य पढ़ें जिनकी कहानियाँ हमारे समय का दस्तावेज हैं, साथ ही हेमंत व अवधेश प्रीत को अपनी पसंद के आधार पर रिकमंड करूँगा....काफ़ी चीजें याद दिला दीं..शुक्रिया:-)
- कहानियों मे कृपया शिवमूर्ति, संजीव व अखिलेश को अवश्य पढ़ें जिनकी कहानियाँ हमारे समय का दस्तावेज हैं, साथ ही हेमंत व अवधेश प्रीत को अपनी पसंद के आधार पर रिकमंड करूँगा....काफ़ी चीजें याद दिला दीं..शुक्रिया:-)
- अपने साथ कहानियां लिख रहे प्रियंवद, महेश कटारे, आनंद हर्षुल, शशांक, अवधेश प्रीत, योगेंद्र आहूजा, पंकज मित्र, संतोष दीक्षित आदि की रचनाओं के प्रति हमेशा उत्सुकता बनी रहती है.
- ' A Hundred Lamps ' (2012), जिसमें मेरी कहानी ‘ स्पंदन ' प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, निर्मल वर्मा, उदय प्रकाश, अवधेश प्रीत और रेखा अग्रवाल की कहानियों के साथ शामिल की गयी है।
- बात 2006 की है, तब हिन्दुस्तान फीचर डेस्क, पटना में अवधेश प्रीत की पाठशाला का छात्र था (इसका जिक्र पहले भी '' शर्म करो! ' नियत ' नहीं ' नीयत ' होगा सुदर्शन न्यूज वालों '' में कर चुका हूं).
- इसी रणनीति के तहत शनिवार को पटना हिन्दुस्तान कार्यालय में अस्सिटेंट एडिटर पद पर काम कर रहे अवधेश प्रीत एवं डीएनई पद पर कार्यरत सुनील कुमार गौतम, अभय सिंह, गंगा शरण झा सहित प्रोवेंशियल डेस्क पर काम करने वाले कई लोंगों को परीक्षा देनी पडी।
- सनद रहे कि हिन्दुस्तान का पेज बनने के बाद उसे प्रोवेंशियल डेस्क इंचार्ज अवधेश प्रीत और इसके बाद संपादक भी देखते हैं पर किसी की नजर इतनी बड़ी भूल पर नहीं जाती अवधेश प्रीत ऐसे भी संपादक के करीबी और उन्हीं के स्वजातीय हैं इसलिए अकु श्रीवास्तव की उन पर ज्यादा कृपा बनी रहती है।
- सनद रहे कि हिन्दुस्तान का पेज बनने के बाद उसे प्रोवेंशियल डेस्क इंचार्ज अवधेश प्रीत और इसके बाद संपादक भी देखते हैं पर किसी की नजर इतनी बड़ी भूल पर नहीं जाती अवधेश प्रीत ऐसे भी संपादक के करीबी और उन्हीं के स्वजातीय हैं इसलिए अकु श्रीवास्तव की उन पर ज्यादा कृपा बनी रहती है।