अनामदास का पोथा sentence in Hindi
pronunciation: [ anaamedaas kaa pothaa ]
Examples
- इस रचना में यदि विराम चिह्नों का न होना ही कविता है तो फिर अनामदास का पोथा या राग दरबारी से विराम चिह्नों को विलोप कर उन्हें महाकाव्य की तरह भी पढ़ा जा सकता है!
- इस रचना में यदि विराम चिह्नों का न होना ही कविता है तो फिर अनामदास का पोथा या राग दरबारी से विराम चिह्नों को विलोप कर उन्हें महाकाव्य की तरह भी पढ़ा जा सकता है!
- अपने प्रसिद्ध उपन्यास अनामदास का पोथा में हजारी प्रसाद द्विवेदी अपने नाम की व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि हज़ार वस्तुतः सहस्त्र में विद्यमान हस्र का ही फ़ारसी उच्चारण है....यूं शक्ति का एक रूप भी हजारी है।
- किताब: सामर्थ्य और सीमा (भगवती चरण वर्मा), नाच्यो बहुत गोपाल (अमृतलाल नागर), फ्रीडम एट मिडनाइट (लैरी कॉलिंस, डोमिनिक लॉपियरे), हिन्दी निरुक्ति (आचार्य किशोरीदास वाजपेयी), अनामदास का पोथा (हजारी प्रसाद द्विवेदी) और न जाने कितनी किताबें इस सूची में जुड़ सकती हैं।
- बाबा नागार्जुन ने कुत्ते की खुजली का वर्णन किया है तो परबाबा आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने अनामदास का पोथा खोल कर एक पात्र की खुजली का वर्णन करते हुए कहा था कि उसे खुजली इसलिए हो गई कि राजकुमारी ने अपनी दृष्टि उसकी पीठ पर डाली थी।
- एक तरह से यह रोमांटिक कल्पना का व्यायाम है, जिसे प्रसाद जी के प्रसंग में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने प्रणयानुभूति का सहसा ससीम पर से कूद कर असीम पर जाना कहा है और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ' अनामदास का पोथा ' में ' छतपफाड़ अंगद कूद ' बताया है।
- हिन्दी में यदि अनामदास का पोथा, बूँद और समुद्र, गोदान आदि का मंचन हो सकता है तो संस्कृत के रंगकर्मी कादंबरी, दशकुमारचरित विक्रमादित्य कथा आदि का मंचन क्यो नही कर सकते? आवश्यक यह भी है कि वह सूची भी बनायी जाये जिन नाटको का मंचन अभी नही हो पाया है।
- लेकिन मुझे याद आ रहे हैं पंडिज् जी, यानि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, जिन् होंने व् योमकेश शास् त्री, प्रचंड, रंजन, द्विरद, राधामाधव शाक पार्थिव, अभिनव तुकाराम नामों से लेखन किया और जिनकी रचनाएं चारुचन् द्र का लेखा-' चारुचन् द्रलेख ' है और है ' बाणभट्ट की आत् मकथा ', इससे भी आगे ' अनामदास का पोथा ', मानों उनका कुछ नहीं।
- वाणभट्ट की आत्मकथा में धूम्रेश्वरी की दशभुजा पाषाण मूर्ति के साधक के संपूर्ण उत्सर्ग के प्रभाव से महामाया रानी के रूप में परिवर्तित हो जाने का प्रसंग हो या अनामदास का पोथा में जटिल मुनि के पद्मासनबद्ध सावित्री की दिव्य मूर्ति के रूप में परिणत हो जाने का प्रसंग हो, वह कल्पना की इसी यौगिक संभावना की ओर संकेत करते हैं कि मनुष्य अपने श्रद्धेय के साथ एकमेक हो सकता है।