अनात्मवाद sentence in Hindi
pronunciation: [ anaatemvaad ]
"अनात्मवाद" meaning in English "अनात्मवाद" meaning in Hindi
Examples
- अपने उत्तर में नागसेन ने बुद्ध के दर्शन के अनात्मवाद, कर्म या पुनर्जन्म, नाम-रूप (मन और भौतिक तत्त्व), निर्वाण आदि को ज़्यादा विशद करने का प्रयत्न किया है।
- स्पष्टतः इस कहानी के समय तक प्रेमचंद के लिये यथार्थवाद का मतलब ' अनात्मवाद ' है और आत्मवाद के पक्ष से अनात्मवाद के साथ बहस करते हुए वे आत्मवाद को ही विजयी ठहराते हैं।
- स्पष्टतः इस कहानी के समय तक प्रेमचंद के लिये यथार्थवाद का मतलब ' अनात्मवाद ' है और आत्मवाद के पक्ष से अनात्मवाद के साथ बहस करते हुए वे आत्मवाद को ही विजयी ठहराते हैं।
- उनके अनुसार शरीर का प्रत्येक हिस्सा नश्वर है. बुद्ध का प्रमुखदार्शनिक तत्व था--"सब कुछ आत्मा रहित है", वे अनात्मवाद को मानने वालेथे अतः उन्होंने कर्म और फल द्वारा ही संसार-~ संचालन को महत्त्व दिया.
- ' कफ़न ' तक आकर अनात्मवाद को उसका वह विकट आकार मिलता है जिसके समक्ष आत्म का प्रतिरोध खो जाने की संभावना खड़ी हो जाती है जबकि प्रेमचंद की प्राथमिक चिन्ता उसे बचाने की ही है।
- वे भारतीय शुद्घतावाद के अहं से मुक्त व्यक्ति भी थे, कलाकार भी, वे बुद्घ के अनात्मवाद और उपनिषदों के आत्मवाद के समन्वित रूप थे शायद इसीलिए उन्होंने लिखा है-बुद्घ ही विश्व विजेता हैं, सिंकदर नहीं।
- एक समाज है कि व्यक्तिगत उपलब्धि और प्रबुद्ध स्वार्थ का जश्न मनाने के लिए, एक लंबे भाषण सेवा उपन्यास विषय की व्याख्या और अनात्मवाद की रैंड की पुस्तक में दर्शन देने के पुनर्निर्माण में उभर सबसे लंबे समय तक एकल अध्याय.
- इन दलित-संत कवियों ने बुद्ध के प्रतीत्यसमुप्पाद, अनात्मवाद और अनित्यवाद जैसे भौतिकवादी दर्शन के आधार पर अवतारवाद, कर्मवाद, पुनर्जन्मवाद, नियतिवाद तथा आत्मा-परमात्मा आदि विश्वासों और आस्थाओं को पोषित करने वाले विचारों और सिद्धांतों का विखंडन करके ब्राहणवाद और सामंतवाद का ही विखंडन कर दिया।
- ५ डॉ. राधाक़ष्णन के इस आग्रहपूर्णतथ्य विरोधी धारणाके संबंध में यही कहा जा सकता है कि यहां बुद्धके अनात्मवाद को उपनिषदोंके आत्मवाद के पक्ष में घसीटते हुए बौद्धनिर्वाण को `प अमसत्ता मनवाने कीचेष्टा की गयी है, किंतु बौद्धनिर्वाण को अभावात्मक छोड भावात्मक वस्तु मानाही नहीं जा सकता.
- विकासवाद का निरूपण करने और उस पर अपनी राय देते चलने के बाद आचार्य शुक्ल ने ‘विश्वप्रपंच ' की भूमिका में कहा है इसी विकासवाद को लेकर हैकल आदि ने अपने प्रकृतिवाद या अनात्मवाद की प्रतिष्ठा की है जिसका विरोध पौराणिक कथाओं तक ही नहीं रह जाता, बल्कि सारे ईश्वरवादी या आत्मवादी दर्शनों तक पहुँचता है।