दादा धर्माधिकारी sentence in Hindi
pronunciation: [ daadaa dhermaadhikaari ]
Examples
- उस समय के प्रमुख गांधीवादी विचारक दादा धर्माधिकारी, कुमारप्पा, शंकरराव देव, धीरेंद्र मजुमदार आदि बड़े गांधीवादी नेता ऐसी ही व्याख्या द्वारा लोकतंत्र के प्रति अपना खुला विरोध जता रहे थे.
- महाराष्ट्र में तो इस नाम-पदवी के साथ कई विभूतियां हुई हैं, जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दादा भाई नौरोजी, न्यायाधिकारी दादा धर्माधिकारी, फिल्मों के दादा फाल्के, जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं।
- बिना किसी चुनाव या नैतिकता के. विनोबा के अलावा उनके सहयोगियों में दादा धर्माधिकारी, धीरेंद्र मजूमदार, शंकरराव देव जैसे तत्कालीन कांग्रेसी, जिन्हें कांग्रेस में विचारवान नेता होने का गौरव प्राप्त था, भी संसदीय लोकतंत्र के आलोचकों में थे.
- अधिवेशन में पं सुन्दर लाल त्रिपाठी, सुनीत कुमार चटर्जी, आचार्य क्षिति मोहन सेन, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, भदंत आनंद कौशल्यान, बाबूराम सक्सेना, दादा धर्माधिकारी, डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र, भवानी प्रसाद मिश्र, भवानी प्रसाद तिवारी, प्रो.
- ' सुरतिया जाकी मतवारी, पतली कमरिया, उमरिया बाली '-सहगल की यह लाइन सुनकर भावविभोर काका के मुँह से निकला 'क्या वर्णन है! ' दादा धर्माधिकारी ने जिसे ' दु:शासन पर्व ' कहा, सेन्सरशिप के उस दौर में पूरा देश रत्नाकार भारतीय और ओंकारनाथ श्रीवास्तव को बीबीसी पर सुनता था ।
- एक बार मैने गांधी दर्शन के भाष्यकार व मेरे पिता दादा धर्माधिकारी से पूछा, आज गांधीजी होते तो क्या करते? दादा ने उत्तर दिया मैंनहीं जानता कि वे क्या करते! लेकिन तुम हो तो क्या करोगे या कर सकते हो, उसके बारे में सोचो! गांधीजी के बाद समस्याआें का स्वरूप बदल गया है ।
- बापू की गोद में नारायण देसाई बापू की गोद में पुस्तक समर्पण प्रकाशकीय प्राक्कथन: दादा धर्माधिकारी लेखक के दो शब्द मंगल मन्दिर खोलो! प्रभात किरणें पूरे प्रेमीजन रे हर्ष शोक का बँटवारा स्नेह और अनुशासन १९३० – ३२ की धूप – छाँह नयी तालीम का जन्म बापू की प्रयोगशाला यज्ञसंभवा मूर्ति अग्निकुण्ड में खिला गुलाब वह अपूर्व अवसर मोहन और महादेव भणसाळीकाका मैसूर [...]
- साबरमती-आश्रम मे बापू से वर्धा के लिए उन्होंने माँग की तो वह विनोबा जैसे व्यक्ति की, अपने राजनीतिक मामलों में सलाहकार और निजी मंत्री के तौर पर उन्होंने दादा धर्माधिकारी का चुनाव किया, रचनात्मक कार्यों में सत्यनिष्ठ तथा व्यावहारिक सलाह देने के लिए उन्होंने श्रीकृष्णदासजी जाजू को चुना, बजाजवाड़ी में अपने निवास के बगल में उन्होंने किशोरलाल मशरूवाला को बसाया, इसके अलावा कितने ही अप्रसिद्ध, लेकिन चुनिन्दा कार्यकर्ताओं को वे वर्धा खींच लाये थे, उनके सामने उन्होंने अपनी भूमिका नम्र भक्त, जिज्ञासु और जीवनसाधक की ही मानी थी ।