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तत्त्वार्थसूत्र sentence in Hindi

pronunciation: [ tettevaarethesuter ]

Examples

  1. गृद्धपिच्छ के तत्त्वार्थसूत्र * में, जो जैन संस्कृत वाङमय का आद्यसूत्र ग्रन्थ है, सिद्धान्त के साथ दर्शन और न्याय का भी अच्छा प्ररूपण है।
  2. हिन्दुओं में जिस तरह गीता का, मुसलमानों में कुरान का और ईसाईयों में बाइबिल का महत्त्व है वही महत्त्व जैनपरम्परा में तत्त्वार्थसूत्र को प्राप्त है।
  3. आचार्य गृद्धपिच्छ ने * तत्त्वार्थसूत्र * में, जो ' अर्हत् प्रवचन ' के नाम से प्रसिद्ध है, लिखा है तत्त्वार्थ की श्रद्धा सम्यक् दर्शन है।
  4. द्वादशांग का वर्णन तत्त्वार्थवार्तिक के अनुरूप है, संगीत का वर्णन भरत मुनि के नाट्यशास्त्र से अनुप्राणित है और तत्त्वों का वर्णन तत्त्वार्थसूत्र तथा सर्वार्थसिद्धि के अनुकूल है।
  5. प्राचीनतम के जैन धर्मवैधानिक साहित्य जैसे अचरंगासुत्र और नियमासरा, तत्त्वार्थसूत्र आदि जैसे ग्रंथों ने साधारण व्यक्ति और तपस्वीयों के लिए जीवन का एक मार्ग के रूप में योग पर कई संदर्भ दिए है.
  6. प्राचीनतम के जैन धर्मवैधानिक साहित्य जैसे अचरंगासुत्र और नियमासरा, तत्त्वार्थसूत्र आदि जैसे ग्रंथों ने साधारण व्यक्ति और तपस्वीयों के लिए जीवन का एक मार्ग के रूप में योग पर कई संदर्भ दिए है.
  7. ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद् गुणलब्धये॥ इस मंगल पद्य में वही विषयवर्णित है जो तत्त्वार्थसूत्र के दस अध्यायों में चर्चित है-मोक्ष मार्ग का नेतृत्व, विश्वतत्त्व का ज्ञान और कर्म के विनाश का उल्लेख।
  8. यह तब होता है, जब मन, संवाद और शरीर की गतिविधियों द्वारा उत्पन्न स्पंदन के कारण कर्म कण आत्मा की ओर आकर्षित होते हैं| तत्त्वार्थसूत्र 6:1-2 के अनुसार, “मन, संवाद और शरीर की गतिविधियों को योग कहते हैं।
  9. अपने इस कथन को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने आचार्य गृद्धपिच्छ के तत्त्वार्थसूत्र के, जिसे ' महाशास्त्र ' कहा जाता है, उस सूत्र को प्रस्तुत किया है, जिसमें प्रमाण और मय को जीवादि तत्त्वार्थों को जानने का उपाय बताया गया है और वह है-' प्रमाणनयैरधिगम: * ' ।
  10. उदाहरण के लिए तत्त्वार्थसूत्र (गृद्धपिच्छाचार्य), तत्त्वार्थसार (अमृतचन्द्र), तत्त्वार्थवार्तिक (अकलंकदेव), तत्त्वार्थवृत्ति (श्रुतसागरसूरि), तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-भाष्य (विद्यानन्द), अष्टसहस्री (विद्यानन्द), पत्रपरीक्षा (विद्यानंद), सत्यशासनपरीक्षा (आ 0 विद्यानन्द), तत्त्वार्थभाष्य (उमास्वामि), तत्त्वार्थवृत्ति (सिद्धर्षिगणी) आदि सहस्रों ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखें गये हैं।
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