गौरीशंकर हीराचंद ओझा sentence in Hindi
pronunciation: [ gaaurishenker hiraachend ojhaa ]
Examples
- सुविख्यात इतिहासकार महामहोपाध्याय पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा (1863-1947) के अनुसार “प्रतापगढ़ का सूर्यवंशीय राजपूत राजपरिवार मेवाड़ के गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा से सम्बद्ध रहा है”.
- संग्रहं यस्सुवृत्तनां सुवृत्तनामिव व्यधात् इसमें यमक के द्वारा जिस चंद्रराज कवि का संकेत है, यह राजबहादुर श्रीयुत् पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार 'चंद्रक' कवि है जिसका उल्लेख कश्मीरी कवि क्षेमेंद्र ने भी किया है।
- डा. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अनेक शास्त्रीय ग्रंथों के आधार पर सिद्ध किया है कि “पाणिनि” और “यास्क” से भी अनेक शताब्दी पूर्व भारत में अनेक लिखित ग्रंथ थे और लेखन कला का प्रयोग भी होता था।
- डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा के इतिहास की साक्षी, उदयपुर से सम्बद्ध कहना है कि चित्तौड़ छूट जाने के बाद महाराणा उदयसिंह अधिकतर कुंभलगढ़ में रहा करते थे और उदयपुर नगर पूरी तरह नहीं बसा था।
- किस प्रकार आशोक के समय के अक्षरों से नागरी अक्षर क्रमशः रूपांतरित होते होते बने हैं यह पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने ' प्राचीन लिपिमाला ' पुस्तक में और एक नकशे के द्वारा स्पष्ट दिखा दिया है ।
- संग्रहं यस्सुवृत्तनां सुवृत्तनामिव व्यधात् इसमें यमक के द्वारा जिस चंद्रराज कवि का संकेत है, यह राजबहादुर श्रीयुत् पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार ' चंद्रक ' कवि है जिसका उल्लेख कश्मीरी कवि क्षेमेंद्र ने भी किया है।
- दुल्हेराय जी के नरवर मध्यप्रदेश से राजस्थान के ढूढाड प्रदेश में आने के बारे विभिन्न इतिहासकारों ने अलग-अलग समय दर्ज किया है | डा. गौरीशंकर हीराचंद ओझा दुल्हेराय के पिता सोढदेव के राजस्थान आने का समय वि.
- डा. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अनेक शास्त्रीय ग्रंथों के आधार पर सिद्ध किया है कि “ पाणिनि ” और “ यास्क ” से भी अनेक शताब्दी पूर्व भारत में अनेक लिखित ग्रंथ थे और लेखन कला का प्रयोग भी होता था।
- महामहोपाध्याय रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने बांसवाडा के इतिहास में छींच के ब्रह्मा मंदिर का उल्लेख करते हुए लिखा है कि-विकम की बारहवीं शताब्दी के आस-पास का पाषाण निर्मित ब्रह्मा मंदिर जिसका विशाल सभा-मंडप, गुम्बद और स्तम्भों पर की बेजोड़ कलाकृतियां उत्कृष्ट कोटि के शिल्प का उदाहरण हैं ।
- इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा रोहिड़ा वाला ने लिखा है-‘भगवती मीरां के समकालीन मेड़ता राज्य के परम शत्रु जोधपुर नरेश राव मालदेवजी भी उनके भक्ति भाव से भयभीत हो गये थे कि मेड़ता विजय के उपरांत जब राव जयमल के समस्त राजभवनों को द्वेष से नष्ट करा दिया तब श्री चतुर्भुजजी के देवालय और मीरांबाई की भजनशाल-कोठरी को उन्हें सुरक्षित रखना पड़ा।