इरफ़ान हबीब sentence in Hindi
pronunciation: [ irefan hebib ]
Examples
- इरफ़ान हबीब की शिक़ायत है कि इस आन्दोलन के विविध धार्मिक पन्थों के अनुयायियों ने स्वयं को कभी किसान नहीं समझा और किसानों के किसी भी हिस्से की आर्थिक या सामाजिक माँगों को नहीं उठाया।
- इस ख़बर के बारे में इतिहासकार इरफ़ान हबीब भी कहते हैं, “इस तरह की ख़बरें 20-25 साल पहले भी मिली थीं और इसी के बाद लोगों को मीनारों पर चढ़ने की मनाही कर दी गई थी.”
- लेकिन जब कोई सूरजभान, इरफ़ान हबीब ये कहता है की राम, अयोध्या या राम मंदिर सब कोरी लफ्फाजी है, इतिहास नहीं मिथ है तो स्वरूपानंद जी जैसों की हालत दयनीय होती है..
- जो व्यक्ति १ ९ ४ ९ में व्यापारिक पूंजी की गतिविधियाँ देख कर भारतीय पूंजीवाद की देशज संभावनाओं की तरफ इशारा कर रहा है, वह इतिहास लेखन सम्बन्धी अपनी मौलिक अंतर्दृष्टियों में इरफ़ान हबीब का पूर्वर्ती है.
- इतिहासकार पाव्लोव ने इस बात पर भी उचित ही आश्चर्य व्यक्त किया है कि आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली देहाती दस्तकारियों के भीतर निहित पूँजीवादी विकास की सम्भावनाओं की ओर इरफ़ान हबीब ने ध्यान ही नहीं दिया है।
- इरफ़ान हबीब अपनी पुस्तक के बारे में कृष्णा सोबती और असद ज़ैदी द्वारा पुस्तक पर चर्चा पुस्तक के बारे में सत्यम (हिन्दी अनुवादक) का वक्तव्य इस अवसर पर भगतसिंह और उनके साथियों पर आधारित पुस्तकों और पोस्टरों/चित्रों की प्रदर्शनी भी लगायी जायेगी।
- BBCHindi. com http://www.bbc.co.uk/hindi/ http://www.bbc.co.uk/hindi/images/furniture/syndication/bbchindi_180x80.gif no title1857: हिंदुस्तान का ख़याल, धर्म का असर http://www.bbc.co.uk/go/wsy/pub/rss/1.0/-/hindi/regionalnews/story/2007/05/070506_spl_1857_irfan.shtml जाने-माने इतिहासकार इरफ़ान हबीब मानते हैं कि पहली बार इतने बड़े पैमाने पर लोग किसी विद्रोह में शामिल हुए थे, लिहाज़ा 1857 के विद्रोह को स्वाधीनता का पहला संग्राम कहा जा सकता है.
- परन्तु राजीव धवन, सच्चर, कुलदीप नैयर, रोमिला थापर, इरफ़ान हबीब, शाहबुद्दीन, असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोगो ने अगले दिन अपने जहरीले प्रवचनों से घोषित कर दिया की हाई कोर्ट का निर्णय एक पंचायती निर्णय है और आस्था के आधार पर हुआ है.
- प्राचीन और मध्यकालीन भारत में जाति और उत्पादन-सम्बन्धों को लेकर कोसम्बी, आर. एस. शर्मा और इरफ़ान हबीब जैसे इतिहासकारों ने स्पष्ट और काफी हद तक सटीक सूत्रीकरण दिये हैं, लेकिन उत्तर-औपनिवेशिक भारत में पूँजीवादी विकास के बाद इन्हें समझने की कोशिश काफ़ी देर से शुरू हुई।
- उदाहरण के लिए 1981 में ' भारत में अंग्रेज़ी राज, भाग-1 व 2 ′ के में इन्हीं निष्कर्षों को और अधिक विस्तार से उन्होंने एडम स्मिथ, एडमंड बर्क, बर्नियर, मोरलैंड, इरफ़ान हबीब, दादाभाई नौरोजी, एम. एन राय, जेंक्स, मेरठ में कम्यूनिस्ट नेताओं के बयान और रजनी पाम दत्त की पुस्तकों की आलोचनात्मक समीक्षा करते हुए निकाला है.