अविद्वान sentence in Hindi
pronunciation: [ avidevaan ]
"अविद्वान" meaning in English "अविद्वान" meaning in Hindi
Examples
- उनके मरने के पश्चात् आर्य समाज में उसके नाम के विपरीत काफी सारे अविद्वान और चालाक लोग भी शामिल हो गए जैसे कि फिलहाल स्वामी अग्निवेश जैसे लोग हैं।
- राजा अश्वपति कहते हैं कि मेरे राज्य में कोई चोर नहीं है, न कंजूस, न मद्यप यानी कि नशा करने वाला, न अग्निहोत्र से हीन और अविद्वान है।
- एक आदर्श यानी कि सुशासित राज्य में चोर, कंजूस यानी कि केवल अपने स्वार्थ में लीन, नशा करने वाला, व्यभिचारी, यज्ञ न करने वाला और अविद्वान नहीं होना चाहिए।
- मुंडकोपनिषद में वर्णित ऋग्वेदादि वेदशास्त्र-समूह रूप अपरा विद्या एवं ब्रह्मज्ञान (ब्रह्मसाक्षात्कार) रूप परा विद्या ये दोनों जिसमें पाई जाएँ वही विद्वान कहाता है और जिसमें यह बात न हो वह अविद्वान है।
- रामायण कालीन सभ्यता का वर्णन करते हुये बाल्मीकि मुनि जी कहते है-कि अयोध्या नगरी मे कोई नर नारी कामी, कंदर्प, निष्ठुर, मूर्ख (अविद्वान) और नास्तिक नहीं था।
- शतपथ ब्राह्मण और छान्दीयउप-~ निषद में केकय के राजा अश्वपति का उल्लेख है और उसके मुख से यह कहागया है कि मेरे जनपद में न कोई चोर है, न कोई शराबी है, न कोई ऐसाव्यक्ति है जो याज्ञिक अनुष्ठान न करता हो, न कोई अविद्वान है और न कोईव्यभिचारी है.
- अर्थ: कैकेय देश के राजा अश्वपति ने कहा, “ मेरे राज्य में कोई चोर नहीं है, कंजूस नहीं, शराबी नहीं, ऐसा कोई गृहस्थ नहीं है, जो बिना यज्ञ किये भोजन करता हो, न ही अविद्वान है और न ही कोई व्यभिचारी है, फिर व्यभिचारी स्त्री कैसे होगी? ”
- मेरे उपरोक्त वर्णित उदाहरण से लोगो को समझना चहिये इसी प्रकार से ये लोग अन्य श्लोकों का गलत अर्थ पेश करते हैं या फिर कोई श्लोक अप्रमाणिक और अमान्य पुस्तक से लेते हैं या फिर वो श्लोक किसी मान्य प्रामणिक पुस्तक में प्रक्षिप्त अर्थात मिलावट किया हुआ अमान्य होता है और या फिर किसी अविद्वान व्यक्ति द्वारा अर्थ किया हुआ होता है.
- रामायण में जगह-जगह-जटायू के लिये पक्षी शब्द का प्रयोग भी किया गया है | इसका समाधान ताड्यब्राह्म्ण से हो जाता है जिसमें उल्लिखित है कि-“ ये वै विद्वांसस्ते पक्षिणो ये विद्वांसस्ते पक्षा ” (ता. ब्रा. १ ४ / १ / १ ३) अर्थात जो जो विद्वान हैं वे पक्षी और जो अविद्वान (मूर्ख) हैं वे पक्ष-
- महाभारत के भयंकर युद्घ में विश्व के सभी वैदिक विद्वान, चिंतक, योद्घा व प्रबुद्घ व्यक्तियों के समाप्त हो जाने से विश्व में वैदिक धर्म का प्राय: पतन हो गया और स्वार्थी, अज्ञानी, अविद्वान ब्राह्मïणों में परस्पर अलग अलग मत, पंथ व संप्रदाय स्थापित कर लिए, जिससे विश्व में अनेकों मत मतांतर प्रचलित हो गये और उन्होंने अपने अपने उपास्य देव भी अलग अलग बना लिए।