अम्बुधि sentence in Hindi
pronunciation: [ amebudhi ]
"अम्बुधि" meaning in English "अम्बुधि" meaning in Hindi
Examples
- कहते हैं, मैं स्वयं विश्व में आया बिना पिता के: तो क्या तुम भी, उसी भांति, सचमुच उत्पन्न हुई थीं माता बिना, मात्र नारायण ऋषि की कामेच्छा से, तप:पूत नर के समस्त संचित तप की आभा-सी? या समुद्र जब अंतराग़्नि से आकुल, तप्त, विकल था, तुम प्रसून-सी स्वयं फूट निकलीं उस व्याकुलता से, ज्यॉ अम्बुधि की अंतराग्नि से अन्य रत्न बनते है?
- उषा-सदृश प्रकटी थीं किन जलदॉ का पटल हटाकर? कहते हैं, मैं स्वयं विश्व में आया बिना पिता के: तो क्या तुम भी, उसी भांति, सचमुच उत्पन्न हुई थीं माता बिना, मात्र नारायण ऋषि की कामेच्छा से, तप: पूत नर के समस्त संचित तप की आभा-सी? या समुद्र जब अंतराग़्नि से आकुल, तप्त, विकल था, तुम प्रसून-सी स्वयं फूट निकलीं उस व्याकुलता से, ज्यॉ अम्बुधि की अंतराग्नि से अन्य रत्न बनते है?
- हिन् दी व् यंग् य लेखन आयोजन यह दिल् ली में है इसमें आएंगे जो जन मन उनके महक जाएंगे व् यंग् य के तीखे फूल वहां पर खिलाए जाएंगे आप खाने मत लग जाना फूलों को मानवता के कवितायेँ आजकल “ वाद ” की ड्योढ़ी पर ठिठकी हैं ह्रदय-अम्बुधि अंतराग्नि से पयोधिक-सी छटपटाती * उछ्रंखल * प्रेममय रंगहीन पारदर्शी कवितायेँ जिन्हें लुभाता है सिर्फ एक रंग कृष्ण की बांसुरी का लहरों के मस्तक पर धर पग लुक छिप खेलती प्रबल वेग के...
- सामने देश माता का भव्य चरण है जिह्वा पर जलता हुआ एक बस प्रण है काटेंगे अरि का मुंड या स्वयं कटेंगे पीछे परन्तु इस रन से नहीं हटेंगे पहली आहुति है अभी यज्ञ चलने दो दो हवा देश को आग जरा जलने दो जब ह्रदय, ह्रदय पावक से भर जायेगा भारत का पूरा पाप उतर जायेगा देखोगे कैसे प्रलय चंड होता है असिवंत हिंद कितना प्रचंड होता हुई बाँहों से हम अम्बुधि अगाध थाहेंगे धस जाएगी यह धरा अगर चाहेंगे तूफ़ान हमारे इंगित पर ठहरेगा हम जहाँ कहेंगे मेघ वही घरेगा
- हे प्रभु यह जीवन बहुत विस्तृत है और कठिनाइयाँ अनेक हैं अथाह मुसीबतों का सागर सामने हैं कितने ही आस्तीन के सांप फन फैलाये बैठे हैं इन सब के स्थूलकाय अम्बुधि से क्या मैं मुक्त्त हो पाउँगा जो अनंत काल से स्मृति और कुटुंब बन सम्बन्धी और नातेदार बन पीछे दौड़ते हैं आईना दिखाते हैं तरह तरह के जिसमें अपने आप को अपने मूल स्वरुप को बदलता हुआ देख घबरा जाता हूँ आत्मा तक बेचैन हो जाती है कहीं आँखें छलिया तो नहीं मझे इस स्मृति भरे आयुर्बल से न जाने कब मुक्ति मिलेगी...