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शालाक्य sentence in Hindi

pronunciation: [ shaalaakey ]
"शालाक्य" meaning in Hindi  

Examples

  1. उत्तरतंत्र: इस तंत्र में ६ ४ अध्याय हैं जिनमें आयुर्वेद के शेष चार अंगों (शालाक्य, कौमार्यभृत्य, कायचिकित्सा तथा भूतविद्या) का विस्तृत विवेचन है।
  2. यों तो शल्य, शालाक्य, काय चिकित्सा, भूत विद्या, कौमार भृत्य, अंगद, रसायन और वाजीकरण आयुर्वेद इन आठ तंत्रों में विभक्त है ।
  3. अखंडा-~ नन्द आयुर्वेद कालेज के शल्य शालाक्य विभाग में प्राध्यापक केरूप में कार्यरत प्रसिद्ध चिकित्सक श्री हारिद्र दवे जी की सुयोग्य धर्मपत्नीवैद्या जी कुशल चिकित्सिका, व्यवहार कुशल तथा विनम्र वैद्या हैं.
  4. उस समय भी शल्य का क्षेत्र सामान्य कायिक शल्यचिकित्सा था और ऊध्र्वजत्रुगत रोगों एवं शल्यकर्म (अर्थात् नेत्ररोग, नासा, कंठ, कर्ण आदि के रोग एव तत्संबंधी शल्यकर्म) का विचार अष्टांगायुर्वेद के शालाक्य नामक शाखा में पृथक् रूप से किया जाता था।
  5. उस समय भी शल्य का क्षेत्र सामान्य कायिक शल्यचिकित्सा था और ऊध्र्वजत्रुगत रोगों एवं शल्यकर्म (अर्थात् नेत्ररोग, नासा, कंठ, कर्ण आदि के रोग एव तत्संबंधी शल्यकर्म) का विचार अष्टांगायुर्वेद के शालाक्य नामक शाखा में पृथक् रूप से किया जाता था।
  6. उस समय भी शल्य का क्षेत्र सामान्य कायिक शल्यचिकित्सा था और ऊध्र्वजत्रुगत रोगों एवं शल्यकर्म (अर्थात् नेत्ररोग, नासा, कंठ, कर्ण आदि के रोग एव तत्संबंधी शल्यकर्म) का विचार अष्टांगायुर्वेद के शालाक्य नामक शाखा में पृथक् रूप से किया जाता था।
  7. इसके आठ अंग हैं (१) शल्य (चीरफाड़), (२) शालाक्य (सलाई), (३) कायचिकित्सा (ज्वर, अतिसार आदि की चिकित्सा), (४) भूतविद्या (झाड़-फूँक), (५) कौमारभृत्य (बालचिकित्सा), (६) अगदतंत्र (बिच्छू, साँप आदि के काटने की दवा), (७) रसायन और (८) बाजीकरण । आयुर्वेद शरीर में बात, पित्त, कफ मानकर चलता है ।
  8. (१) काय चिकित्सा-सामान्य चिकित्सा (२) कौमार भृत्यम्-बालरोग चिकित्सा (३) भूत विद्या-मनोरोग चिकित्सा (४) शालाक्य तंत्र-उर्ध्वांग अर्थात् नाक, कान, गला आदि की चिकित्सा (५) शल्य तंत्र-शल्य चिकित्सा (६) अगद तंत्र-विष चिकित्सा (७) रसायन-रसायन चिकित्सा (८) बाजीकरण-पुरुषत्व वर्धन औषधियां:-चरक ने कहा, जो जहां रहता है, उसी के आसपास प्रकृति ने रोगों की औषधियां दे रखी हैं।
  9. आयुर्वेद अथवा किसी भी चिकित्सा शास्त्र के अध्ययन के लिए शरीर रचना का ज्ञान नितांत आवश्यक है | चिकित्सा में निपुणता प्राप्त करने के लिए प्रथम और आवश्यक सोपान शरीर विज्ञान है | इस ज्ञान के बिना चिकित्सा, शल्य, शालाक्य, कौमारभृत्य आदि किसी भी आयुर्वेद के अंग का अध्ययन संभव नहीं | चिकित्सा के प्रमुख दो वर्ग है-
  10. इसके आठ अंग हैं (१) शल्य (चीरफाड़), (२) शालाक्य (सलाई), (३) कायचिकित्सा (ज्वर, अतिसार आदि की चिकित्सा), (४) भूतविद्या (झाड़-फूँक), (५) कौमारभृत्य (बालचिकित्सा), (६) अगदतंत्र (बिच्छू, साँप आदि के काटने की दवा), (७) रसायन और (८) बाजीकरण ।
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