युक्तिदीपिका sentence in Hindi
pronunciation: [ yuketidipikaa ]
Examples
- यदि युक्तिदीपिका की रचना शंकराचार्य के बाद हुई होती तो शंकर कृत सांख्य खण्डन पर युक्तिदीपिकाकार के विचार होते।
- युक्तिदीपिका में उपलब्ध सभी उद्धरणों के मूल का पता लगने पर संभव है रचनाकाल के बारे में और अधिक सही अनुमान लगाया जा सके।
- साथ ही युक्तिदीपिका का अन्य प्रचलित नाम राजवार्तिक भी रहा होगा * * सुरेन्द्रनाथदास गुप्त भी राजा कृत कारिकाटीका को राजवार्तिक स्वीकार करते हैं जिसका उद्धरण वाचस्पति मिश्र ने दिया है * ।
- आचार्य उदयवीर शास्त्री ने जयन्तभट्ट की न्यायमंजरी में ' यत्तु राजा व्याख्यातवान्-प्रतिराभिमुख्ये वर्तते ' तथा युक्तिदीपिका में ' प्रतिना तु अभिमुख्यं '-के साम्य तथा वाचस्पति मिश्र द्वारा ' तथा च राजवार्तिकं ' (72 वीं कारिका पर तत्त्वकौमुदी) कहकर युक्तिदीपिका के आरंभ में दिए श्लोकों में से 10-12 श्लोकों को उद्धृत करते देख युक्तिदीपिकाकार का नाम ' राजा ' संभावित माना है।
- आचार्य उदयवीर शास्त्री ने जयन्तभट्ट की न्यायमंजरी में ' यत्तु राजा व्याख्यातवान्-प्रतिराभिमुख्ये वर्तते ' तथा युक्तिदीपिका में ' प्रतिना तु अभिमुख्यं '-के साम्य तथा वाचस्पति मिश्र द्वारा ' तथा च राजवार्तिकं ' (72 वीं कारिका पर तत्त्वकौमुदी) कहकर युक्तिदीपिका के आरंभ में दिए श्लोकों में से 10-12 श्लोकों को उद्धृत करते देख युक्तिदीपिकाकार का नाम ' राजा ' संभावित माना है।
- ' महत: षाड्विशेषा: सृज्यन्ते तन्मात्राण्यहंकारश्चेति विंध्यवासिमतम् ' पंचाधिकरण इन्द्रियों को भौतिक मानते हैं-' भौतिकानीन्द्रियाणीति पंचाधिकरणमतम् ' (22 वीं कारिका पर युक्तिदीपिका) संभवत: वार्षगण्य ही ऐसे सांख्याचार्य हैं जो मानते हैं कि प्रधानप्रवृत्तिरप्रत्ययापुरुषेणाऽपरिगृह्यमाणाऽदिसर्गे वर्तन्ते * ' साथ ही वार्षगण्य के मत में एकादशकरण मान्य है जबकि प्राय: सांख्य परम्परा त्रयोदशकरण को मानती है युक्तिदीपिका के उक्त उल्लेखों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय तक सांख्यदर्शन में अनेक मत प्रचलित हो चुके थे।
- ' महत: षाड्विशेषा: सृज्यन्ते तन्मात्राण्यहंकारश्चेति विंध्यवासिमतम् ' पंचाधिकरण इन्द्रियों को भौतिक मानते हैं-' भौतिकानीन्द्रियाणीति पंचाधिकरणमतम् ' (22 वीं कारिका पर युक्तिदीपिका) संभवत: वार्षगण्य ही ऐसे सांख्याचार्य हैं जो मानते हैं कि प्रधानप्रवृत्तिरप्रत्ययापुरुषेणाऽपरिगृह्यमाणाऽदिसर्गे वर्तन्ते * ' साथ ही वार्षगण्य के मत में एकादशकरण मान्य है जबकि प्राय: सांख्य परम्परा त्रयोदशकरण को मानती है युक्तिदीपिका के उक्त उल्लेखों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय तक सांख्यदर्शन में अनेक मत प्रचलित हो चुके थे।