बाबू श्यामसुंदर दास sentence in Hindi
pronunciation: [ baabu sheyaamesunedr daas ]
Examples
- उन्होंने अनुसंधान और खोज परंपरा का प्रवर्तन किया तथा आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास की परंपरा को आगे बढा़ते हुए हिन्दी आलोचना को मजबूती प्रदान की।
- बाबू श्यामसुंदर दास ने भी हिंदी साहित्य के उत्तर-मध्यकाल में शृंगार रस की प्रचुरता एवं रीतिमुक्त कवियों का महत्त्व स्वीकार करते हुए इसका नामकरण रीतिकाल ही उचित समझा।
- उन्होंने अनुसंधान और खोज परंपरा का प्रवर्तन किया तथा आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास की परंपरा को आगे बढा़ते हुए हिन्दी आलोचना को मजबूती प्रदान की।
- स्वर्गीय पं. श्री रामनारायण मिश्र और बाबू श्यामसुंदर दास जी के साथ मिलकर नागरी प्रचारिणी सभा का संगठन किया था तथा अन्य सहयोगियों के साथ इस सभा की उन्नति में लगे रहे थे।
- भारतेंदु हरिशचन्द्र, कालाकांकर नरेश, राजा रामपाल सिंह, अलीगढ़ के बाबू तोता राम, बाबू श्यामसुंदर दास, बाबू राधाकृष्ण दास और पं. मदनमोहन मालवीय के सत्प्रयत्न रंग लाये और उत्तर प्रदेश के न्यायालयों में देवनागरी के वैकल्पिक प्रयोग का रास्ता साफ हुआ।
- द्विवेदी युग के विशिष्ट साहित्यकारों-बाबू श्यामसुंदर दास, गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, रायकृष्णदास, अम्बिका प्रसाद बाजपेयी, मुंशी देवी प्रसाद, आचार्य राम चन्द्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी, कामता प्रसाद गुरु और मैथिलीशरण गुप्त आदि के साथ गुलेरी जी का पत्र-आदान-प्रदान था ।
- शब्द चयन के बारे में बाबू श्यामसुंदर दास का मत था-' सबसे पहला स्थान शुद्ध हिंदी के शब्दों को, उसके पीछे संस्कृत के सुगम और प्रचलित शब्दों को, इसके पीछे फारसी आदि विदेशी भाषाओं के साधारण और प्रचलित शब्दों का और सबसे पीछे संस्कृत के अप्रचलित शब्दों को स्थान दिया जाए।
- शब्द चयन के बारे में बाबू श्यामसुंदर दास का मत था-' सबसे पहला स्थान शुद्ध हिंदी के शब्दों को, उसके पीछे संस्कृत के सुगम और प्रचलित शब्दों को, इसके पीछे फारसी आदि विदेशी भाषाओं के साधारण और प्रचलित शब्दों का और सबसे पीछे संस्कृत के अप्रचलित शब्दों को स्थान दिया जाए।
- बाद में चलकर यह नगर भारतेंदु हरिशचंद्र, देवकीनंदन खत्री, मुशी प्रेमचंद्र, बाबू श्यामसुंदर दास, जयशंकर ‘ प्रसाद ', रामचंद्र शुक्ल व आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के कारण भी प्रसिद्ध रहा पर ये सारे विद्वान् भी वहाँ के साँड और ज़र्दे वग़ैरा का स्तर नहीं छू पाए।
- बाबू श्यामसुंदर दास के कोश आप इस तरह देखते और उद्धृत करते हैं तो मुझे कोई हैरानी नहीं जो उस फेसबुकिया “ बहस ' ' में आप अज्ञेय को और आपके एक सद्भावी प्रेमचंद, रेणु, सियारामशरण गुप्त से लेकर कमलेश्वर तक को ‘‘ गलौच ” यानी ‘ बदचलनी ' हिंदी वाला बता जाते हैं।