प्रयोजनीयता sentence in Hindi
pronunciation: [ peryojeniyetaa ]
"प्रयोजनीयता" meaning in English
Examples
- बेहतर भविष्य की संकल्पना और टिकाऊ ग्रामीण विकास की दिशा में राजनीतिक इच्छाशक्ति महत्त्वपूर्ण कारक है, क्योंकि नवाचार की प्रयोजनीयता और उपादेयता असीम संभावनाओं को जमीनी अधार प्रदान कर सकने में पूर्णतः सक्षम है।
- किसी भी लोकप्रियता और उद्धरणीयता के मोह में पड़े बिना वे एक तरफ अपनी कविता को भाषा, तर्क और नई उपपत् तियों से जोड़ते हैं तो दूसरी तरफ वे कविता की प्रयोजनीयता की ओर से भी मुँह फेरे नही रहते.
- कविता कला की समस् त चुनौतियों को अपने मूड़े-माथे उठाए हुए वे जहॉं भाषा की शक् ति और सामर्थ् य का पूरा उपयोग करते हैं वहीं अपने इस दायित् व से मुँह नहीं मोड़ते कि किसी भी कला की प्रयोजनीयता अंतत: उसकी सामाजिक उपयोगिता में है.
- उनका स्पष्ट मानना है कि ‘‘ समीक्षा का आधार यही नही होना चाहिए कि समीक्ष्य कृति से किस तात्कालिक प्रयोजनीयता की सिद्धि हो रही है, बल्कि यह होना चाहिए कि जीवन के जिस पक्ष को रचनाकार ने प्रस्तुत करना चाहा है, उसमें कहां तक सफल हुआ है।
- तुलसीदास त्रिपाठी दास देवनागरी द्वितीय द्वितीय प्रश्न पत्र द्विवेदी द्वीप नकल नगेन्द्र नदी नवगीत नागमती नाटक नाथ नि: शस्त्र निबंध निमाड़ी निराला निर्धारित निलय पद-50 पद्मावत पर पाठ्य पाठ्यक्रम पुरानी पुस्तकों पूछे पूजा प्रगतिवाद प्रथम प्रथम प्रश्न पत्र प्रदेश प्रमुख प्रयोगवाद प्रयोजनीयता प्रवृत्तियॉं प्रश्न प्रश्नपत्र प्रसाद प्रारंभिक परीक्षा प्रारम्भिक परीक्षा प्रियंवदा
- उनके व्यंग्य में खुरखुरेपन, विखंडनवृत्ति, तोड़-फोड़ की ही प्रधानता नहीं है, वे मात्र कटु वक्ता ही नहीं है, उनके व्यंग्य में निहित प्रयोजनीयता भी हास्य के आकर्षक और मायावी आवरण में से इस प्रकार झिलमिलाती है, जिस प्रकार बिहारी की सहज-सलज्ज, सरल नायिका के चंचल नयन घूँघट-पट से झाँकते हैं।
- यह बात अलग है कि पारम्परिक गीतों में ठहराव और आत्ममुग्धता की स्थिति उत्पन्न हो जाने के कारण छान्दस काव्य को रचनात्मक गति देने की प्रयोजनीयता को ध्यान में रखकर साठोत्तरी गीत काव्य की समष्टिवादी प्रवृत्तियों के अनुकूल विकसित करने की विवशता गीतकारों के सामने आ खडी हुई थी और वह विवशता इसलिए हुई कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सामाजिक परिप्रेक्ष्य से उत्पन्न विसंगतियों को गीत के पारम्परिक रूप में अभिव्यक्त करना संभव नहीं था।
- युग की बेबसियां चाहे कितना ही दबाव रचनाकारों और सहृदयों के मानस पटल पर बनाती रहें, यदि हमें अपने समशील मानव प्राणियों, मानवेतर प्राणियों के मनोभावों, क्रियाकलापों और नानाविध प्रकरणों में अपनी दिलचस्पी को व्याहत नहीं होने देना है तो हमें अंतत: ऐसे प्रबंधों की प्रयोजनीयता को हृदयंगम करना होगा. डॉ. वेद व्यथित का खंड काव्य न्याय याचना इसी मांग की पूर्ति और प्रतिपूर्ति का साहसपूर्ण उपक्रम है.