चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य sentence in Hindi
pronunciation: [ chekrevreti raajegaopaalaachaarey ]
Examples
- तथा मोतीलाल नेहरू ने किया तो दूसरे दल का नेतृत्व इसके विपरीत चलने वाले चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया।
- राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, गोविन्द बल्लभ पंत, केएम मुंशी, आचार्य कृपलानी और टीटी कृष्णामाचारी तो थे ही।
- जब देश में राष्ट्रीय आंदोलन पूरे वेग पर था तो स्वयं स्वर्गीय चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य ने तमिलनाडु के गांव-गांव में घूमकर हिन्दी का प्रचार किया था।
- जॉर्ज षष्टम ने भारत के स्म्राट की उपाधि, माउंटबैटन के, एवं चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य के गवर्नर-जनरल काल के दौरान भी रखी, तब तक, जब कि भारत सन १९५० २६ जनवरी में [[गणतंत्र नहीं हो गया।
- जॉर्ज षष्टम ने भारत के स्म्राट की उपाधि, माउंटबैटन के, एवं चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य के गवर्नर-जनरल काल के दौरान भी रखी, तब तक, जब कि भारत सन १९५० २६ जनवरी में [[गणतंत्र नहीं हो गया।
- सरदार पटेल से ले कर राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद और चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य तक देश के मझे हुये नेता नेहरू को तिब्बत समझोते के विरुध चेतावनी देते रहै लेकिन नेहरू रूपी दुर्योधन ने किसी की बात नहीं सुनी थी।
- सन् 1944 में श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य जब उदयपुर की प्रसिद्ध शिक्षण संस् था ‘ विद्याभवन ' के वार्षिकोत् सव पर मुख् य अतिथि के रूप में आये थे तो वे विद्याभवन के उस बुनियादी विद्यालय में भी आये थे जिसमें मैं काम करता था।
- उस समय किसी ने ऐसे हालात की कल्पना भी की होती, तो संविधान निर्माता समिति के जवाहर लाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, पंडित गोविन्द बल्लभ पंत और आचार्य कृपलानी ही विदेशी मूल के नागरिक को सर्वोच्च पदों से वंचित करने का प्रावधान करके जाते।
- गांधी जी के एकता वाले व्यक्तित्व के बिना इंडियन नेशनल कांग्रेस उसके जेल में दो साल रहने के दौरान ही दो दलों में बंटने लगी जिसके एक दल का नेतृत्व सदन में पार्टी की भागीदारी के पक्ष वाले चित्त रंजन दास (Chitta Ranjan Das) तथा मोतीलाल नेहरू ने किया तो दूसरे दल का नेतृत्व इसके विपरीत चलने वाले चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया।
- गांधी जी के एकता वाले व्यक्तित्व के बिना इंडियन नेशनल कांग्रेस उसके जेल में दो साल रहने के दौरान ही दो दलों में बंटने लगी जिसके एक दल का नेतृत्व सदन में पार्टी की भागीदारी के पक्ष वाले चित्त रंजन दास (Chitta Ranjan Das) तथा मोतीलाल नेहरू ने किया तो दूसरे दल का नेतृत्व इसके विपरीत चलने वाले चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया।