सैरन्ध्री meaning in Hindi
pronunciation: [ sairendheri ]
Examples
- प्रजा को रक्षा के लिये गुहार लगाते देख कर सैरन्ध्री ( द्रौपदी ) से रहा न गया और उन्होंने राजकुमार उत्तर को कौरवों से युद्ध करने के लिये न जाते हुये देखकर खूब फटकारा।
- द्रौपदी के वचन सुन कर कीचक के भाइयों ने क्रोधित होकर कहा , “हमारे अत्यन्त बलवान भाई की मृत्यु इसी सैरन्ध्री के कारण हुई है अतः इसे भी कीचक की चिता के साथ जला देना चाहिये।
- द्रौपदी के वचन सुन कर कीचक के भाइयों ने क्रोधित होकर कहा , “ हमारे अत्यन्त बलवान भाई की मृत्यु इसी सैरन्ध्री के कारण हुई है अतः इसे भी कीचक की चिता के साथ जला देना चाहिये।
- बोला खल - “पर दिखा चुका जो ललित कला यह , क्या चूमा भी जाय कुशलता-कर न भला वह ? सैरन्ध्री कहूं विशेष क्या तू, ही मेरी सम्पदा, मेरे वश में है, राज्य यह, मैं तेरे वश में सदा।”
- बोला खल - “पर दिखा चुका जो ललित कला यह , क्या चूमा भी जाय कुशलता-कर न भला वह ? सैरन्ध्री कहूं विशेष क्या तू, ही मेरी सम्पदा, मेरे वश में है, राज्य यह, मैं तेरे वश में सदा।”
- पर मैं रानी दूती बनूँ , हृदय इसे कैसे सहे ? मन ही मन यहसोच सोच कर सभय सयानी, सैरन्ध्री से प्रेम सहित बोली तब रानी - इतने दिन हो गए यहाँ तुझको सखि, रहते, देखी गई न किन्तु स्वयं तू कुछ कहते।
- तब ज्यों ज्यों करके शीघ्र ही अपने मन को रोक के , यों धर्मराज कहने लगे उसकी ओर विलोक के, - “हे सैरन्ध्री, व्यग्र न हो तुम, धीरज धारो, नरपति के प्रति वचन न यों निष्ठुर उच्चारो न्यायमिलेगा तुम्हें, शीघ्र महलों में जाओ, नृप हैं अश्रुवृत्त, न को दोष लगाओ।
- भाभी हैं क्या यहाँ चिढ़ें जो यह कहने से ? और मोद हो तुम्हें विनोद-विषय रहने से ! अपमान किसी का जो करे वह विनोद भी है बुरा, यह सुनकर ही होगी न क्या सैरन्ध्री क्षोभातुरा ! मैं भी उसको पूर्णरूप से नहीं जानती, एक विलक्षण वधू मात्र हूँ उसे मानती।
- यदि पुरुष जनों का प्रेम है पावन नेम निबाहता तो कीचक मुझ-सा क्यों नहीं सैरन्ध्री को चाहता ? सैरन्ध्री यह बात श्रवण कर क्या न कहेगी ? वह मनस्विनी कभी मौन अपमान सहेगी ? घोर घृणा की दृष्टि मात्र वह जो डालेगी, मुझको विष में बुझी भाल-सी वह सालेगी ! ऐसे भाई की बहन मैं, हूँगी कैसे सामने, होते हैं शासन-नीति के दोषी जैसे सामने।
- यदि पुरुष जनों का प्रेम है पावन नेम निबाहता तो कीचक मुझ-सा क्यों नहीं सैरन्ध्री को चाहता ? सैरन्ध्री यह बात श्रवण कर क्या न कहेगी ? वह मनस्विनी कभी मौन अपमान सहेगी ? घोर घृणा की दृष्टि मात्र वह जो डालेगी, मुझको विष में बुझी भाल-सी वह सालेगी ! ऐसे भाई की बहन मैं, हूँगी कैसे सामने, होते हैं शासन-नीति के दोषी जैसे सामने।