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सहज प्राप्य meaning in Hindi

pronunciation: [ shej peraapey ]
सहज प्राप्य meaning in English

Examples

  1. सही मार्ग तो यह है कि इस धारणा को बल प्रदान किया जाय कि दूसरे सुखी व संतुष्ट होंगे तो संतुष्ट लोग हमारे सुखों पर कभी अतिक्रमण नहीं करेंगे और सुख सभी के लिए सहज प्राप्य रहेंगे।
  2. और करुण बात ये है कि रामायण में वर्णित और उसमें सहज प्राप्य , अपने साथी के प्रति जीवन भर की निष्ठा के बावजूद कुछ लोग उस के क्रौञ्च होने पर ही प्रश्न खड़ा कर रहे हैं।
  3. हमारा असली धन तो हमारे मन की स्थिरता , समता भाव , तथा अखंड शांति है , जो अच्युत है , जिसे कोई बाहरी आधार नहीं चाहिए जो अपने भीतर ही सहज प्राप्य है , जो हमारा मूल है .
  4. जग बौराना ' की खबर लेने के साथ-साथ ही , कुछ ‘ आतमखबर ' भी रख सके , उसके लिए कबीर का तो क्या , कबीर के राम का घर भी सहज प्राप्य हो जाता है- ‘ सहज सुभाय मिले रामराइ ' ।
  5. अनामदास इसलिए अनाम नहीं हैं कि किसी को गाली देकर भाग जाने में सुविधा हो बल्कि इसलिए कि शब्दों की दुनिया में ऐसा समानांतर जीवन जिया जा सके जो पापी पेट या नाम के भूखे दिमाग़ के लिए जीने वालों को सहज प्राप्य नहीं है .
  6. वैसे तो परमात्म प्रेम सहज प्राप्य है , पर मन इसे देख नहीं पाता , जब शरणागति की भावना उपजती है , अपने अंतर को शांत बनाने की इच्छा बलवती होती है , तो भक्ति प्रकट होती है और आगे का मार्ग सरल हो जाता है .
  7. पहला विकल्प आसान है उसके लिए ज़्यादा कुछ नहीं करना पड़ता , भारत में अभावयुक्त जीवन सहज प्राप्य है लेकिन मेरे-आपके जैसे लोगों की दोहरी ट्रेजडी है-पहले जी-जान से चीज़ों के पीछे भागना और कुल मिलाकर अभाव में जीवन जीने वाले व्यक्ति से कहीं ज़्यादा बेचैन रहना .
  8. इसमें कवि को संयम की परिधि में बँधे हुए जिस भावातिरेक की आवश्यकता होती है वह सहज प्राप्य नहीं , कारण हम प्रायः भाव की अतिशयता में कला की सीमा लाँघ जाते हैं उसके उपरान्त , भाव के संस्कार मात्र में मर्मस्पर्शिता का शिथिल हो जाना अनिवार्य है।
  9. सदियों से इस विषय को समझने की सीखने की पर , ये सिर्फ पढ़ने और सुनने में ही सहज लगता है ये विषय इतना सरल है नहीं और ना ही इस विषय के रहस्य ही इतने सहज प्राप्य है की जिनका ज्ञान पाकर हम इस दिव्य विषय में पारंगतता हासिल कर सके.
  10. कहने का तात्पर्य यही है कि जब लाखों वर्षों के अनुभव-ज्ञान का निचोड़ सहज प्राप्य है तो क्यों अतिकष्टप्रद और जोखिम भरे अनुभवों से गुजरा जाय ? यह भी सच है कि प्रत्येक कार्य की जिज्ञासा और करने का रोमांच भी मानवीय स्वभाव का हिस्सा है तथापि कईं दुष्परिणामी खतरों से पर-अनुभव के आधार से बचा जाना चाहिए।
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