विषयासक्त meaning in Hindi
pronunciation: [ viseyaasekt ]
Examples
- इस स्वयं की खोज के पथ पर आगे बढ़ने में हमारी कर्मेन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियाँ बाधक है , क्योंकि ये विषयासक्त हैं और आत्मज्ञान के लिए विषयों के बंधन तोड़े बिना कोई उपाय नहीं है।
- ” मुझ परमेश्वर में अनन्य योग के द्वारा अव्यभिचारिणी भक्ति तथा एकान्त और शुद्ध देश में रहने का स्वभाव और विषयासक्त मनुष्यों के समुदाय में प्रेम का न होना ( यह ज्ञान है ) ।
- हाँ सर , बात तो सही है यही तो माया है ( हल्के में लीजियेगा ) जब कृष्ण ने मुक्ति सुझाई तो है- रथ के घोडे़ इन्द्रियाँ हैं जो हर तरह से विषयासक्त होना चाहती हैं।
- यह मन वासनामय , विषयासक्त , गुणों से प्रेरित , विकारी और भूत एवं इन्द्रियरुप सोलह कलाओं में मुख्य है | यही भिन्न-भिन्न नामों से देवता और मनुष्यादी रूप धारण करके शरीररूप उपाधियों के भेद से जीवकी उत्तमता और अधमता का कारण होता है || ५ ||
- यह मन वासनामय , विषयासक्त , गुणों से प्रेरित , विकारी और भूत एवं इन्द्रियरुप सोलह कलाओं में मुख्य है | यही भिन्न-भिन्न नामों से देवता और मनुष्यादी रूप धारण करके शरीररूप उपाधियों के भेद से जीवकी उत्तमता और अधमता का कारण होता है || ५ ||
- यह अपेक्षा उनसे रहेगी . .. बाकी आपसे क्या बात की जाय .... ? क्वचिदन्यतोपि पर विषय को विस्तार से लेने का अजेंडा है -युग द्रष्टा देव ऋषियों की वाणी को केवल एक सीमित काल खंड के संदर्भ में देखना उचित नहीं है ..... ! बहरहाल विषयासक्त जुझारू भूमिका निभाई है यहाँ आपने ....
- कहा गया है कि दुष्ट , कपटी, लोभी, लालची, विषयासक्त मनुश्य उपरोक्त जंगम और स्थावर तीर्थों का कितना ही दर्शन लाभ क्यों न पा ले, मगर यदि उसमे सत्य, क्षमा, दया और इन्द्रिय संयम , दान और अन्य सदाचार नहीं हैं तो कितने ही तीर्थों का फेरा लगा ले , उसे पावनता नहीं मिल सकती ।
- बेशक इस क्रम में माँसाहार , बीड़ी पीने, चोरी करने, विषयासक्त रहना जैसी कई आरंभिक भूलें भी उनसे हुईं और बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए विदेश जाने पर भी अनेक भ्रमों-आकर्षणों ने उन्हें जब-तब घेरा, लेकिन अपने पारिवारिक संस्कारों, माता-पिता के प्रति अनन्य भक्ति, सत्य, अहिंसा तथा ईश्वर साध्य बनाने के कारण गाँधीजी उन संकटों से उबरते रहे।
- बेशक इस क्रम में मांसाहार , बीड़ी पीने, चोरी करने, विषयासक्त रहना जैसी कई आरंभिक भूलें भी उनसे हुईं और बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए विदेश जाने पर भी अनेक भ्रमों-आकर्षणों ने उन्हें जब-तब घेरा लेकिन अपने पारिवारिक संस्कारों, माता-पिता के प्रति अनन्य भक्ति, सत्य, अहिंसा तथा ईश्वर साध्य बनाने के कारण, गांधीजी उन संकटों से उबरते रहे ।
- कहा गया है कि दुष्ट , कपटी , लोभी , लालची , विषयासक्त मनुष्य उपर्युक्त जंगम और स्थावर तीर्थों का कितना ही दर्शन लाभ क्यों न पा ले , मगर यदि उसमे सत्य , क्षमा , दया , इन्द्रिय संयम , दान और अन्य सदाचार नहीं हैं तो कितने ही तीर्थों का फेरा लगा ले , उसे पावनता नहीं मिल सकती।