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विरह व्यथा meaning in Hindi

pronunciation: [ virh veythaa ]
विरह व्यथा meaning in English

Examples

  1. राग “मियाँ की मल्हार” के स्वरों में अधिकतर रचनाएँ चंचल , श्रृंगार रस प्रधान और वर्षा ऋतु में नायिका की विरह व्यथा को व्यक्त करने वाली होती हैं, किन्तु यह गीत मन्ना डे के स्वरों में ढल कर भक्तिरस की अभिव्यक्ति करने में कितना सफल हुआ है, इसका निर्णय आप गीत सुन कर स्वयं करें -
  2. लम्बी जुदाई ! !!! साढ़े तीन महीने के लम्बे ब्लॉग वियोग के बाद मौक़ा मिला है, की आज अपनी विरह व्यथा लिखी जाए! सचमुच बड़ी ही दुसह दुख:द और दुस्वार होती है ब्लॉग जुदाई! मायावी दुनिया की आपा धापी में ब्लॉग जगत के आत्मिक रस से वंचित रहना किसी क्रोधित ऋषि के श्राप भोगने जैसा है !
  3. हाँ , क्योंकि ये ही सब चीज़ें तो प्यार हैं यह अकेलापन, यह अकुलाहट, यह असमंजस, अचकचाहट, आर्त, अनुभव,यह खोज, यह द्वैत, यह असहाय विरह व्यथा, यह अन्धकार में जाग कर सहसा पहचानना कि जो मेरा है वही ममेतर है यह सब तुम्हारे पास है तो थोड़ा मुझे दे दो-उधार-इस एक बार मुझे जो चरम आवश्यकता है ।
  4. राग “ मियाँ की मल्हार ” के स्वरों में अधिकतर रचनाएँ चंचल , श्रृंगार रस प्रधान और वर्षा ऋतु में नायिका की विरह व्यथा को व्यक्त करने वाली होती हैं , किन्तु यह गीत मन्ना डे के स्वरों में ढल कर भक्तिरस की अभिव्यक्ति करने में कितना सफल हुआ है , इसका निर्णय आप गीत सुन कर स्वयं करें -
  5. इस जन्म में न पा सकूँ तो अगले जन्म में अवश्य पाऊंगी , तब देखोगे सती-साध्वी की क्षूब्द भुजाओं में कितना बल है।” अनुपमा बड़े आदमी की लड़की है, घर से संलग्न बगीचा भी है, मनोरम सरोवर भी है, वहां चांद भी उठता है, कमल भी खिलते है, कोयल भी गीत गाती है, भौंरे भी गुंजारते हैं, यहां पर वह घूमती फिरती विरह व्यथा का अनुभव करने लगी।
  6. राग “मियाँ की मल्हार” के स्वरों में अधिकतर रचनाएँ चंचल , श्रृंगार रस प्रधान और वर्षा ऋतु में नायिका की विरह व्यथा को व्यक्त करने वाली होती हैं, किन्तु यह गीत मन्ना डे के स्वरों में ढल कर भक्तिरस की अभिव्यक्ति करने में कितना सफल हुआ है, इसका निर्णय आप गीत सुन कर स्वयं करें - पहेली 07/शृंखला 15 गीत का ये हिस्सा सुनें- अतिरिक्त सूत्र - फिल्म संगीत खजाने का एक श्रेष्ठतम नगीना है ये गीत, ऐसा मान उस्ताद विलायत खान ने भी.
  7. भावार्थ : - श्री रघुनाथजी के ( श्याम ) रंग का सुंदर जल देखकर सारे समाज सहित भरतजी ( प्रेम विह्वल होकर ) श्री रामजी के विरह रूपी समुद्र में डूबते-डूबते विवेक रूपी जहाज पर चढ़ गए ( अर्थात् यमुनाजी का श्यामवर्ण जल देखकर सब लोग श्यामवर्ण भगवान के प्रेम में विह्वल हो गए और उन्हें न पाकर विरह व्यथा से पीड़ित हो गए , तब भरतजी को यह ध्यान आया कि जल्दी चलकर उनके साक्षात् दर्शन करेंगे , इस विवेक से वे फिर उत्साहित हो गए ) ॥ 220 ॥
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