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पूर्णकाम meaning in Hindi

pronunciation: [ purenkaam ]
पूर्णकाम meaning in English

Examples

  1. सिर नवाकर , देवताओं को मनाकर , राजा हाथ जोड़कर सबसे कहने लगे कि देवता और साधु तो भाव ही चाहते हैं , ( वे प्रेम से ही प्रसन्न हो जाते हैं , उन पूर्णकाम महानुभावों को कोई कुछ देकर कैसे संतुष्ट कर सकता है ) , क्या एक अंजलि जल देने से कहीं समुद्र संतुष्ट हो सकता है॥ 1 ॥
  2. बोले , क्या सत्य नहीं मेरे वे पहले स्वप्न जिनमें अनेक बार मैं हूँ समाई इन प्रलम्ब पुष्ट बाँहों में तुम्हारी ? मिथ्या क्या है मेरे अंतर का देवता जिसने आकर्षण से मुझको है बाँधा नित संग से तुम्हारे ? बोलो , क्यों संभव नहीं हम दोनों का मिलकर पूर्णकाम होना ? क्यों तुमको मेरा यह अनथक अनुरागभरा यौवन का स्वस्थ आलिंगन स्वीकार नहीं ? ”
  3. आत्मा पूर्णकाम है , वह आनन्दपूर्ण है , शांतिमयी और सुखमयी है , वह है , वह सहज है , झरने की तरह , पंछी की तरह , फूल की तरह और नन्हे बच्चे की तरह , उसे कोई अपेक्षा नहीं , उसके हृदय में उपेक्षा भी नहीं , वह जैसी भी परिस्थिति आये सहज रूप से व्यवहार करती है , वह प्रेमिल है , वह सूर्य की भांति सारे शरीर को प्रकाशित करती है .
  4. आत्माराम होने पर भी भूख लगना , पूर्णकाम होने पर भी अतृप्त रहना, शुद्ध सत्त्वस्वरूपहोने पर भी क्रोध करना, लक्ष्मीपतिहोने पर भी चोरी करना, महाकाल, यम आदि को भय देने वाले होने पर भी डरना और भागना, मन से भी तीव्र गतिवालाहोने पर भी माता के हाथों पकडे जाना, आनंदकंदहोने पर भी दुखी होना और रोना, सर्वव्यापक होने पर भी बंध जाना यह सब लीला भगवान भक्त के प्रेम में वशीभूत होकर ही करते हैं किंतु यह भगवत्प्रेमभी उनकी कृपा से ही उत्पन्न होता है।
  5. आत्माराम होने पर भी भूख लगना , पूर्णकाम होने पर भी अतृप्त रहना, शुद्ध सत्त्वस्वरूपहोने पर भी क्रोध करना, लक्ष्मीपतिहोने पर भी चोरी करना, महाकाल, यम आदि को भय देने वाले होने पर भी डरना और भागना, मन से भी तीव्र गतिवालाहोने पर भी माता के हाथों पकडे जाना, आनंदकंदहोने पर भी दुखी होना और रोना, सर्वव्यापक होने पर भी बंध जाना यह सब लीला भगवान भक्त के प्रेम में वशीभूत होकर ही करते हैं किंतु यह भगवत्प्रेमभी उनकी कृपा से ही उत्पन्न होता है।
  6. सारथी के ये वचन सुनकर परमानन्द में निमग्न महात्मा रैक्व ने कुछ सोचकर उससे कहाः “ यद्यपि हम पूर्णकाम हैं - हमें किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है , तथापि कोई भी हमारी मनोवृत्ति के अनुसार परिचर्या कर सकता है , ” रैक्व के हार्दिक अभिप्राय को आदप-पूर्वक ग्रहण करके सारथी धीरे से राजा के पास चल दिया , वहाँ पहुँचकर राजा को प्रणाम करके उसने हाथ जोड़कर सारा समाचार निवदेन किया , उस समय स्वामी के दर्शन से उसके मन में बड़ी प्रसन्नता थी , सारथि के वचन सुनकर राजा के नेत्र आश्चर्य से चकित हो उठे।
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