जीवन्मुक्ति meaning in Hindi
pronunciation: [ jivenmuketi ]
Examples
- निर्भयता , जीवन्मुक्ति , साम्राज्य , स्वराज्य सिवाय उस पुरुष के , जो अपने आप को संशयरहित होकर पूर्णब्रह्म शुद्ध सच्चिदानन्द , नित्यमुक्त , जानता है और किसी को कभी भी नहीं नसीब होते।
- निर्भयता , जीवन्मुक्ति , साम्राज्य , स्वराज्य सिवाय उस पुरुष के , जो अपने आप को संशयरहित होकर पूर्णब्रह्म शुद्ध सच्चिदानन्द , नित्यमुक्त , जानता है और किसी को कभी भी नहीं नसीब होते।
- अतः संतश्री आसाराम जी ने थोड़ा-सा दूध व फल ग्रहण कर यह स्थान भी छोड़ दिया और आबू की एकांत गुफाओं , हिमालय के एकांत जंगलों तथा कन्दराओं में जीवन्मुक्ति का विलक्ष्ण आनंद लूटते रहे।
- उस समय समाधि - सुख कोटिगुणित होकर जागृत में प्राप्त होता है , और वह होता है गुरुचरण कृपा से जीवन्मुक्ति का अनुभव जाग्रत में अविच्छित्रतया समाधि जनित सुखानुभूति ही तो जीवन्मुक्ति है जिसमें विभोर रह कर महात्मा जन ब्रह्म स्वरूप हो जाते हैं।
- उस समय समाधि - सुख कोटिगुणित होकर जागृत में प्राप्त होता है , और वह होता है गुरुचरण कृपा से जीवन्मुक्ति का अनुभव जाग्रत में अविच्छित्रतया समाधि जनित सुखानुभूति ही तो जीवन्मुक्ति है जिसमें विभोर रह कर महात्मा जन ब्रह्म स्वरूप हो जाते हैं।
- कर्म के तुल्य ज्ञान अदृष्ट के द्वारा मरण के पश्चात फल नहीं देता , क्योंकि वह कर्म के तुल्य विधेय नहीं है , कारण कि ज्ञान तीनों कालों में अखण्डरूप से स्थित है , इस प्रकार जीवन्मुक्ति की सिद्धि नहीं हो सकती , यह सारांश है।
- इस लोक की सिद्धि ( जीवन्मुक्ति ) तथा परलोक की सिद्धि के ( विदेह मुक्ति के ) लिए या मनुष्यलोक और स्वर्ग आदि लोकों में अधिकारियों की ज्ञान सिद्धि के लिए पुरुषार्थरूप फल देने वाली , मोक्ष के उपायों के उपदेश से परिपूर्ण तथा सारभूत जिस संहिता को कहूँगा , उसे सावधान होकर सुनिये।
- जिस साधक का जीवन सत्य से युक्त , मान, मत्सर, ममता और ईर्ष्या से रहित होता है, जो गुरु में दृढ़ प्रीतिवाला, कार्य में दक्ष तथा निश्चल चित्त होता है, परमार्थ का जिज्ञासु होता है - ऐसा नौ-गुणों से सुसज्ज साधक शीघ्र ही गुरुकृपा का अधिकारी होकर जीवन्मुक्ति के विलक्षण आनन्द का अनुभव कर लेता है अर्थात परमात्म-साक्षात्कार कर लेता है।
- जिस साधक का जीवन सत्य से युक्त , मान , मत्सर , ममता और ईर्ष्या से रहित होता है , जो गुरु में दृढ़ प्रीतिवाला , कार्य में दक्ष तथा निश्चल चित्त होता है , परमार्थ का जिज्ञासु होता है - ऐसा नौ-गुणों से सुसज्ज साधक शीघ्र ही गुरुकृपा का अधिकारी होकर जीवन्मुक्ति के विलक्षण आनन्द का अनुभव कर लेता है अर्थात परमात्म-साक्षात्कार कर लेता है।
- इस प्रकार श्रीरामचन्द्रजी द्वारा पूछे गये भगवान् वसिष्ठ , जब तक श्रीरामचन्द्रजी बन्ध की अविद्याजन्यता , विद्या का स्वरूप और उसके साक्षी अपरिच्छिन्न सर्वाधार चैतन्यस्वरूप को नहीं जानते , तब तक जीवन्मुक्ति में इनका विश्वास नहीं हो सकता , इसलिए पहले उनका उपपादन कर , तदुपरान्त इनके प्रश्न का समाधार करूँगा , यों विचार कर सुबोध होने के कारण पहले साक्षी में स्थूलप्रपंचपरम्परा का अध्यारोप दिखलाते हैं।