चरितार्थता meaning in Hindi
pronunciation: [ cheritaarethetaa ]
Examples
- यह स्पेस एक हद तक पाठकों के अभाव की भी भरपाई करता था- क्योंकि आस्वादकों-आशंसकों द्वारा पर्याप्त प्रशंसा ( अप्रीसिएशन ) न मिल सकने पर भी कविता जन-आन्दोलनों की उपस्थिति-मात्र से अपने वैचारिक आग्रहों की सामाजिक चरितार्थता को प्रमाणित कर सकती थी।
- हर बन्द दरवाजे पर यह परम्परा थाप देती है और कहती है कि खिड़कियाँ खोलो , बाहर आओ , जो बदल रहा है , उसे छोड़ो , जो कभी नहीं बदल सकता , उसे कभी मत छोड़ो अर्थात् इंसानियत-मनुष्यता और परम्परा की चरितार्थता को।
- ईश्वर के सामने सभी बराबर हैं , जाति पांति विरोधी भक्ति आंदोलन का यही मूल सिद्धांत था और वर्णधर्म की रक्षा पर आधारित अवतारवाद की धार्मिक अवधारणा तो भक्ति के समतावादी सिद्धांत को ही खंडित करती है तो फिर पुनरुत्थानवादी चेतना को विकसित करने वाले अवतारवाद की सामाजिक चरितार्थता क्या है?
- यह और भी महत्वपूर्ण इसलिए है कि चिट्ठाकारों की चर्चा और उस चर्चा से उपजी कथित स्वीकार्यता / अस्वीकार्यता को मुँह चिढाता यह ब्लॉग सौ या सौ से अधिक लोगों के साथ चुपचाप ब्लोगरी की हलचल देखता है और क्रमशः परिपूर्णता व चरितार्थता की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहता है ।
- ईश्वर के सामने सभी बराबर हैं , जाति पांति विरोधी भक्ति आंदोलन का यही मूल सिद्धांत था और वर्णधर्म की रक्षा पर आधारित अवतारवाद की धार्मिक अवधारणा तो भक्ति के समतावादी सिद्धांत को ही खंडित करती है तो फिर पुनरुत्थानवादी चेतना को विकसित करने वाले अवतारवाद की सामाजिक चरितार्थता क्या है ?
- उनके रचना संसार में स्त्रीयाँ ‘ साइमन द बुआ ' की शब्दावली में ‘ सत्त आस्था में जीने वाली ही हैं , उनकी चरितार्थता का केन्द्र पुरूष ही है , पर हाँ इतना जरूर है िकवे भारतीय समाज की स्त्री को स्वतंत्रता के निकट लाते हैं और देशकाल की अग्रगामी चेतना को प्रकट करते हैं ।
- लेकिन हमें बताया गया है , इन असत् असार वस्तुओं में , इन अबोध प्राणियों में वे प्रभु निवास करते हैं और जब उनकी उपस्थिति के प्रति ये सचेतन हो जाते है , उनके संकल्प की चरितार्थता में अपना सहयोग प्रदान करते है , तब मंदिर में प्रदिप की भाँति , इनमें आत्मा की ज्योति जगमगाती है , और सब विधान बदल जाता है।
- नई-नई ईजादों से हवस इस कदर नहीं बढ़ी थी , किसी चीज की हाजत न थी तब नई ईजाद क् यों की जाती ? वही अब इस समय देखा जाता है कि लोगों में तृष् णा का क्षय किसी तरह होता ही नहीं , संतोष को किसी कोने में भी कहीं स् थान नहीं मिलता , ' मन नहिं सिंधु समाय ' इस वाक् य की चरितार्थता इन् हीं दिनों देखी जाती है।