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खड़-खड़ meaning in Hindi

pronunciation: [ khede-khed ]
खड़-खड़ meaning in English

Examples

  1. यह कोई घटना नहीं थी दुर्घटना तो कतई थी ही नहीं महज संयोग था कि हम खड़े थे सड़क के किनारे और हड़-हड़ , खड़-खड़ करते सामने से गुज़र गया ट्रैक्टर ट्रैक्टर के गुज़रने में भी आख़िर क्या हो सकता था हमारे लिए वो तो ड्राइवर के पासवाली जगह से गिरी थी प्लास्टिक की नन्हीं-सी डिबिया …
  2. गड़बड़ ढकते हैं सब मिटटी कीचड बच्चा न कोई कोना नुक्कड़ हांक रही पत्तों को आंधी वे लगते भेड़ों के रेवड़ फटे-पुराने कपडों जैसा फेंक दिया पेड़ों ने गूदड़ पेड़ हो गए सूखे नंगे सबके दिखते कंधे कूबड़ सबको झड़ना ही पड़ता है दुबला हो मोटा या अक्खड़ खेलें हम सूखे पत्तों से होने दो होती है खड़-खड़
  3. उत्तरी तैनूं मिलने दा चाअ तैनूं मिलने दी तांघ विच दिता सब गुआ तैनूं मिलने दे चाईं गई कंडिया विच घिर आ ना छडदै ततड़ा कंडड़ा नाले सोखे धुप बेपरवाह मैं हां भुक्खी तेरे प्यार दी मैंनू , तैनू मिलने दा चाअ भैड़ा जग पिया खड़-खड़ वेखदा मेरी जिंद रई ए कुरला तूं ला लै मैनूं हिक नाल मैं जावां तेरे विच समा नाराजग़ी पता नईं क्यों मेरा इह
  4. पत्ते झड़ते खड़-खड़ झड़-झड़ पतझड़ पतझड़ आया पतझड़ टूट गए पत्ते ज्यों पापड किसने की यह सारee गड़बड़ ढकते हैं सब मिटटी कीचड बच्चा न कोई कोना नुक्कड़ हांक रही पत्तों को आंधी वे लगते भेड़ों के रेवड़ फटे-पुराने कपडों जैसा फेंक दिया पेड़ों ने गूदड़ पेड़ हो गए सूखे नंगे सबके दिखते कंधे कूबड़ सबको झड़ना ही पड़ता है दुबला हो मोटा या अक्खड़ खेलें हम सूखे पत्तों से होने दो होती है खड़-खड़
  5. पत्ते झड़ते खड़-खड़ झड़-झड़ पतझड़ पतझड़ आया पतझड़ टूट गए पत्ते ज्यों पापड किसने की यह सारee गड़बड़ ढकते हैं सब मिटटी कीचड बच्चा न कोई कोना नुक्कड़ हांक रही पत्तों को आंधी वे लगते भेड़ों के रेवड़ फटे-पुराने कपडों जैसा फेंक दिया पेड़ों ने गूदड़ पेड़ हो गए सूखे नंगे सबके दिखते कंधे कूबड़ सबको झड़ना ही पड़ता है दुबला हो मोटा या अक्खड़ खेलें हम सूखे पत्तों से होने दो होती है खड़-खड़
  6. जीवन का इकहरापन किसी सुनसान , निर्जन पहाडी घाटी की तरह पैर पसारे हुए है , ठीक राजधानी के कोलहल मे कहीं भी , जगमगाती माल में , बेहिसाब भीडभाड़ से अटी सड़को पर घर-परिवार के सलौने चमकते संसार में भी और यहाँ तक कि लगातार बुदबुदाते , भन्नाते काल सेंटर्स में भी जहाँ रात मे भी कायम रहता है पूरी दूनिया से संवाद खरीदने-बेचने का , उधार और भुगतान का और बंद खिडकियों और अंधेरे कौनो के बीच खड़-खड़ करती मशीनों और आदमियों के बीच भी
  7. मेरी याददाश्त में 1970 में हमारे घर में बुश बैरन का 8 बैण्ड वाला वाल्व रेडियो था ( आज भी है बन्द अवस्था में ) , चमकदार लकड़ी का कैबिनेट और भीतर जोरदार लाइट … और साउंड ऐसा कि आज के 5 ट्रांजिस्टर भी एक साथ शरमा जायें , उसके लिये कॉपर वायर का एंटीना लगाना पड़ता था और वह रेडियो बारिश के समय खड़-खड़ आवाज़ करता था , लेकिन आज भी उस रेडियो से निकली हुई आवाज़ “ ये आकाशवाणी है अब आप देवकीनन्दन पाण्डेय से समाचार सुनिये … ” आज भी कानों में गूंजती है …
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