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किस वास्ते meaning in Hindi

pronunciation: [ kis vaaset ]
किस वास्ते meaning in English

Examples

  1. और जब डाक्टर्स , विपरीत लिंग के अभाव वाले इस यौन व्यवहार को अनुचित नहीं कहते तो फिर आप किस वास्ते समलैंगिकता को मानव का पतन मान रहे हैं ?
  2. इस पर एक कमजोर और सींक-सलाई बुजुर्ग ने फ़र्माया कि जात का क़साई , कुंजड़ा या दिल्ली वाला मालूम होता है , किस वास्ते कि तीन बार गले मिलता है।
  3. इस पर एक कमजोर और सींक-सलाई बुजुर्ग ने फ़र्माया कि जात का क़साई , कुंजड़ा या दिल्ली वाला मालूम होता है , किस वास्ते कि तीन बार गले मिलता है।
  4. एक गुजराती भाई बात काटता हुआ चिल्लाया- ‘‘ होस में बात करो ने सरदारजी ! हिन्दी पखवाड़ा और कुदा-कुदी का क्या मेल भला ! ऐसाइच करना था तो हमकू किस वास्ते बुलाया इधर।
  5. आरम्भ में तो मजदूर यह नहीं समझ पाते कि वे क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं , उनमें इस बात की चेतना का अभाव होता है कि वे अपनी कार्रवाई किस वास्ते कर रहे हैं :
  6. आज मेरे यार की शादी है . .........लगता है जैसे सारे संसार की शादी है.......... शर्किट! यह क्या बक रहा है ? ..तेरी भाभी से अपुन की शादी तो हो गयेला है, तो फिर काई कू और किस वास्ते गारयेला है ?
  7. रेडियो के अपने कार्यकाल में उन्हें प्रशासन के हाथों अन्यायवश अपमान की स्थितियों तक भी पहुँचा दिया , तब भी वे इसी पर डटे रहे कि - टूटने का दर्द जहाँ समझा न जाए ऐसी दुनिया को किस वास्ते सँवारूँ।
  8. वह ऐसे ही हाथ पसारती हुई इधर-उधर डोल रही थी और कोई भी ' थाह ' न मिलने के कारण बार-बार बुदबुदाये जा रही थी- '' वे पत्तरों , मैनूँ अन्नी नू किस वास्ते ज्यूँदा छड़िया ए ! वे पुत्तरों , मेरी वो कोई गरदन लाह दयो।
  9. इस दौर में तू क्यों है परेशां व हिरासां भारत का तू फ़रज़ंद है बेगाना नहीं है क्या बात है क्यों मोत है ज़ल-ज़ल तेरा ईमां ये देश तेरा घर है तू इस घर का मकीं है दानिश कद ए दहर की ऐ शम्मा फ़रोज़ां ताबिन्दह तेरे नूर से इस घर की ज़बीं है ऐ मतल ए तहज़ीब के खुरशीदे दरख्शां किस वास्ते अफ़सुरदा व दिलगीरो हज़ीं है हैरत है घटाओं से तेरा नूर ही तरसां पहले की तरह बागे वतन में हो नवाख्वां भारत के मुसलमां भारत के मुसलमां
  10. मुलाहिज़ा फ़रमाएं उनकी यह ग़ज़ल- यारब ! ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए लौह-ए-जहाँ पे हर्फ़-ए-मुकर्रर नहीं हूँ मैं हद चाहिये सज़ा में उक़ूबत के वास्ते आख़िर गुनहगार हूँ, काफ़िर नहीं हूँ मैं किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे लाल-ओ-ज़ुमरूद-ओ-ज़र-ओ-गौहर नहीं हूँ मैं रखते हो तुम क़दम मेरी आँखों से क्यूं दरेग़ रुतबे में महव-ओ-माह से कमतर नहीं हूँ मैं करते हो मुझको मना-ए-क़दमबोस किस लिए क्या आस्माँ के भी बराबर नहीं हूँ मैं 'ग़ालिब' वज़ीफ़ाख्वार हो, दो शाह को दुआ वो दिन गए कि कहते थे, नौकर नहीं हूं मैं
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