आस्थापन meaning in Hindi
pronunciation: [ aasethaapen ]
Examples
- उपयोग - धामागर्व , इक्ष्वाकु , जीमूत , कृत्वेधन , मदन , कुटज , त्रपुष , हस्तीपर्णी , इनके फलों का प्रयोग वमन तथा आस्थापन अर्थात रुक्षवस्ति में करना चाहिए और नासिका से शिरोवेच अर्थात नास्य लेने में प्रत्यकपुष्पी ( अपामार्ग ) का प्रयोग करना चाहि ए.
- चरक संहिता सूत्र स्थान में स्पष्ट निर्देश है कि जब दोष अधिक बढ़ जाते हैं और सामान्य उपचार से ठीक नहीं होते हैं तो उन्हें पंचकर्म , ( वमन , विरेचन , नस्यकर्म , अनुवासन , आस्थापन वस्ति ) से शरीर के बाहर निकालकर फिर औषधि देना चाहिए।
- चरक संहिता सूत्र स्थान में स्पष्ट निर्देश है कि जब दोष अधिक बढ़ जाते हैं और सामान्य उपचार से ठीक नहीं होते हैं तो उन्हें पंचकर्म , ( वमन , विरेचन , नस्यकर्म , अनुवासन , आस्थापन वस्ति ) से शरीर के बाहर निकालकर फिर औषधि देना चाहिए।
- मूत्र उत्सादन ( उचटना) अलेप्न (लेप करना) आस्थापन ( रुक्षवस्ति लेना), विरेचन (दस्त लेना), स्वेद (अफारा से पशीना लेना) इन उप्योंगों में आते हैं और अफारा, और अगद अर्थात विषहर औषध में और उदर रोंगों और अर्श (बवासीर) गुल्म (फोड़ा), कुष्ठ (कोढ़ आदि त्वचा रोग) किलास (श्वेत कोढ़) आदि रोगों में हितकारी हैं.
- इस प्रकार नस्य , वमन, विरेचन, आस्थापन, अनुवासन, इन पांचों शोधन कर्मो के लिए संक्षेप में औषधियों का उपदेश कर दिया गया है.जिन रोगियों के शरीर में दोष संचित हों, उनको दूर करने के लिए स्नेहन और स्वेदन कराकर मात्र और काल का विचार करते हुए, शिरोविरेचन,वमन,विरेचन,निरुहण, और अन्वासन, इन पॉँच कर्मो का प्रयोग करें,क्योंकि युक्ति, योग, या उक्त कर्मों का प्रयोग मात्र और काल पर निर्भर है.सफलता प्रयोग पर आश्रित है.
- मूत्र उत्सादन ( उचटना ) अलेप्न ( लेप करना ) आस्थापन ( रुक्षवस्ति लेना ) , विरेचन ( दस्त लेना ) , स्वेद ( अफारा से पशीना लेना ) इन उप्योंगों में आते हैं और अफारा , और अगद अर्थात विषहर औषध में और उदर रोंगों और अर्श ( बवासीर ) गुल्म ( फोड़ा ) , कुष्ठ ( कोढ़ आदि त्वचा रोग ) किलास ( श्वेत कोढ़ ) आदि रोगों में हितकारी हैं .