आश्चर्यमय meaning in Hindi
pronunciation: [ aashecheryemy ]
Examples
- भगवान ही एक ऐसा आश्चर्यमय परमपुरुष होता है जिसकी जानकारी भी बिना उसी के किसी को होती ही नहीं , तो घोषणा कौन करेगा ? यही कारण है कि भगवान या अवतारी जब होगा तब स्व घोषित ही होगा , पर घोषित नहीं।
- मैं पहले न देखे हुए आपके इस आश्चर्यमय रूप को देखकर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा है , इसलिए आप उस अपने चतुर्भुज विष्णुरूप को ही मुझे दिखलाइये ! हे देवेश ! हे जगन्निवास ! प्रसन्न होइये।
- मैं पृथ्वी के वचनों से पर्वतों के पास उपस्थित हुआ और कहा कि ' वास्तव में आप लोग बड़े आश्चर्यमय दीख पड़ते हैं | सभी श्रेष्ठ रत्न तथा स्वर्ण आदि धातुओं के शाश्वत आकार भी आप ही हैं , अतएव आप लोग धन्य हैं | '
- भावार्थ : हे भरतवंशी अर्जुन ! तू मुझमें आदित्यों को अर्थात अदिति के द्वादश पुत्रों को , आठ वसुओं को , एकादश रुद्रों को , दोनों अश्विनीकुमारों को और उनचास मरुद्गणों को देख तथा और भी बहुत से पहले न देखे हुए आश्चर्यमय रूपों को देख॥ 6 ॥
- हलके नीले और पीले रङ्ग के रशमी वस्त्र धारण कर रहे हैं , सुवर्ण एवं मरकत मणि की ज्योति वाले तथा आश्चर्यमय लीलायुक्त आनन्द के समुद्र दोनों जिस श्रीवृन्दावन में अनेक प्रकार के हास्य प्रहसनादि के महाकौतुक विनोद के द्वारा आनन्द प्राप्त कर रहे हैं, उसी श्रीवृन्दावन में तू प्रीति कर ॥३.७॥
- साहित्य हमारे प्रबल असंतोष को क्षणिक रूप में ही शांत कर सकता है , किन्तु इसी आश्चर्यमय स्थिति में , जीवन के इसी क्षणिक ठहराव में साहित्यिक घटाटोप हमें उठाकर इतिहास से बाहर पहुँचा देता है, और हम एक समयातीत लोक के निवासी हो जाते हैं, और इस तरह अमर हो जाते हैं.
- अब मैं ब्रह्माजी के पास पहुंचा और उनकी स्तुति करने लगा , “ भगवन ! एकमात्र आप ही धन्य हैं , आप ही आश्चर्यमय हैं | सभी देव , दानव आपकी ही उपासना करते हैं | आपसे ही सृष्टि उत्पन्न होती है , अतएव आपके तुल्य अन्य कौन हो सकता है ? ”
- साहित्य हमारे प्रबल असंतोष को क्षणिक रूप में ही शांत कर सकता है , किन्तु इसी आश्चर्यमय स्थिति में , जीवन के इसी क्षणिक ठहराव में साहित्यिक घटाटोप हमें उठाकर इतिहास से बाहर पहुँचा देता है , और हम एक समयातीत लोक के निवासी हो जाते हैं , और इस तरह अमर हो जाते हैं .
- बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥ भावार्थ : हे भरतवंशी अर्जुन ! तू मुझमें आदित्यों को अर्थात अदिति के द्वादश पुत्रों को , आठ वसुओं को , एकादश रुद्रों को , दोनों अश्विनीकुमारों को और उनचास मरुद्गणों को देख तथा और भी बहुत से पहले न देखे हुए आश्चर्यमय रूपों को देख॥ 6 ॥ इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
- ईश्वर ने उन्हें मनुष्य बनाया है , वह तरह-तरह से चलते हैं , उनके तरह-तरह के विश्वास और संस्कार हैं- लेकिन सबके मूल में एक ही मनुष्यता है , सबके भीतर ऐसा कुछ है जो हमारी अपनी चीज़ है , जिसको सही सच्ची दृष्टि से देखने पर उसकी सारी क्षुद्रता और अधूरेपन का आवरण चीरकर एक आश्चर्यमय महान सत्ता ऑंखों के सामने आती है।