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अनुवासन meaning in Hindi

pronunciation: [ anuvaasen ]
अनुवासन meaning in English

Examples

  1. यह एक तरह का पोषण एनिमा है , जैसे किसी वृक्ष की जड़ों में पानी देने से वह हरा भरा होता है वैसे ही अनुवासन वस्ति देने पर शरीर में पुष्टता या सरसता का संचार होता है।
  2. शारीरिक दोषों को बाहर निकालने के उपायों को शोधन कहते हैं , उसके वमन, विरेचन (पर्गेटिव), वस्ति (निरूहण), अनुवासन और उत्तरवस्ति (एनिमैटा तथा कैथेटर्स का प्रयोग), शिरोविरेचन (स्नफ़्स आदि) तथा रक्तामोक्षणश् (वेनिसेक्शन या ब्लड लेटिंग), ये पांच उपाय हैं।
  3. आस्थापन वस्ति , 4 . अनुवासन बस्ति , 5 . नस्य शल्य चिकित्सानुसार आस्थापन तथा अनुवासन वस्ति को वस्ति शीर्षक के अंतर्गत लेकर तीसरा प्रधान कर्म माना गया है तथा पाँचवाँ प्रधान कर्म ' रक्त मोक्षण ' को माना गया है।
  4. आस्थापन वस्ति , 4 . अनुवासन बस्ति , 5 . नस्य शल्य चिकित्सानुसार आस्थापन तथा अनुवासन वस्ति को वस्ति शीर्षक के अंतर्गत लेकर तीसरा प्रधान कर्म माना गया है तथा पाँचवाँ प्रधान कर्म ' रक्त मोक्षण ' को माना गया है।
  5. आस्थापन वस्ति , 4 . अनुवासन बस्ति , 5 . नस्य शल्य चिकित्सानुसार आस्थापन तथा अनुवासन वस्ति को वस्ति शीर्षक के अंतर्गत लेकर तीसरा प्रधान कर्म माना गया है तथा पाँचवाँ प्रधान कर्म ' रक्त मोक्षण ' को माना गया है।
  6. चरक संहिता सूत्र स्थान में स्पष्ट निर्देश है कि जब दोष अधिक बढ़ जाते हैं और सामान्य उपचार से ठीक नहीं होते हैं तो उन्हें पंचकर्म , ( वमन , विरेचन , नस्यकर्म , अनुवासन , आस्थापन वस्ति ) से शरीर के बाहर निकालकर फिर औषधि देना चाहिए।
  7. चरक संहिता सूत्र स्थान में स्पष्ट निर्देश है कि जब दोष अधिक बढ़ जाते हैं और सामान्य उपचार से ठीक नहीं होते हैं तो उन्हें पंचकर्म , ( वमन , विरेचन , नस्यकर्म , अनुवासन , आस्थापन वस्ति ) से शरीर के बाहर निकालकर फिर औषधि देना चाहिए।
  8. शारीरिक दोषों को बाहर निकालने के उपायों को शोधन कहते हैं , उसके वमन , विरेचन ( पर्गेटिव ) , वस्ति ( निरूहण ) , अनुवासन और उत्तरवस्ति ( एनिमैटा तथा कैथेटर्स का प्रयोग ) , शिरोविरेचन ( स्नफ़्स आदि ) तथा रक्तामोक्षणश् ( वेनिसेक्शन या ब्लड लेटिंग ) , ये पांच उपाय हैं।
  9. शारीरिक दोषों को बाहर निकालने के उपायों को शोधन कहते हैं , उसके वमन , विरेचन ( पर्गेटिव ) , वस्ति ( निरूहण ) , अनुवासन और उत्तरवस्ति ( एनिमैटा तथा कैथेटर्स का प्रयोग ) , शिरोविरेचन ( स्नफ़्स आदि ) तथा रक्तामोक्षणश् ( वेनिसेक्शन या ब्लड लेटिंग ) , ये पांच उपाय हैं।
  10. इस प्रकार नस्य , वमन, विरेचन, आस्थापन, अनुवासन, इन पांचों शोधन कर्मो के लिए संक्षेप में औषधियों का उपदेश कर दिया गया है.जिन रोगियों के शरीर में दोष संचित हों, उनको दूर करने के लिए स्नेहन और स्वेदन कराकर मात्र और काल का विचार करते हुए, शिरोविरेचन,वमन,विरेचन,निरुहण, और अन्वासन, इन पॉँच कर्मो का प्रयोग करें,क्योंकि युक्ति, योग, या उक्त कर्मों का प्रयोग मात्र और काल पर निर्भर है.सफलता प्रयोग पर आश्रित है.
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