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स्पर्शित meaning in Hindi

pronunciation: [ sepreshit ]
स्पर्शित meaning in English

Examples

  1. या यदि वे दिखलाते भी हैं कि वे भी स्पर्शित हुए हैं , तो तम देख सकते हो कि वे सिर्फ बहाना कर रहे हैं , नाटक कर रहे हैं।
  2. मरना सच्चा रस तो तू सोल्लास वहीं मर जा मधुकर यदि वह निद्रा है तो उसमें ही सहर्ष सो जा निर्झर उसका स्नेहिल उर स्पर्शित कर बहने दे पंकिल श्वांसें टेर रहा है स्नेहाकुंरिता मुरली तेरा मुरलीधर।।165।।
  3. ने इनके विश्वनाथ मंदिर में घुसने के समय इनके मार्ग पर हीरे जवाहरात बिछाए ताकि शूद्र के चरण से स्पर्शित हो पवित्र स्थल अपवित्र न हो जाय और बाद में मंदिर के गर्भगृह और आस पास के &
  4. किन शब्दों में धन्यवाद दूं ! … . इस अनमोल टिप्पणी हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद , और चिड़ियों के साथ खेलने की अग्रिम शुभकामनाएं ! ईश्वर ने चाहा , तो मन की तरंगें निर्दोष जीवन को अवश्य स्पर्शित कर पाएंगी ! सादर .
  5. कोमल मन के भावों में हम ऐसे ही पिघला करते हैं पत्थर की नियति के क्या कहने ये दृढ जो मन को रखते हैं शायद उनके ही आंसू हैं , जो ठहरे हैं आकर उनपर , आच्छादित हैं पंखुरियों पर , स्पर्शित प्रस्तर के तन से ,
  6. कोमल मन के भावों में हम ऐसे ही पिघला करते हैं पत्थर की नियति के क्या कहने ये दृढ जो मन को रखते हैं शायद उनके ही आंसू हैं , जो ठहरे हैं आकर उनपर , आच्छादित हैं पंखुरियों पर , स्पर्शित प्रस्तर के तन से ,
  7. जब एक अकेली छतरी में दो प्रेमी चलेंगे तो प्रेम करने वाले चाहेंगे कि उनका प्रेमी कम से कम भीगे और दोनों के ऐसा प्रयास करने से ही उनका स्पर्शित और जुड़ा हुआ हिस्सा तो सूखा रहेगा पर बाहर के हिस्से जो नितांत अलग हैं वे ही भीगेंगे।
  8. जब एक अकेली छतरी में दो प्रेमी चलेंगे तो प्रेम करने वाले चाहेंगे कि उनका प्रेमी कम से कम भीगे और दोनों के ऐसा प्रयास करने से ही उनका स्पर्शित और जुड़ा हुआ हिस्सा तो सूखा रहेगा पर बाहर के हिस्से जो नितांत अलग हैं वे ही भीगेंगे।
  9. समकालीन ग़ज़ल की परिदशा को रेखांकित करती हुई इसकी आंतरिक तरलता को स्पर्शित करते हुए हिंदी ग़ज़ल की प्रमुख कवियत्री मधुरिमा सिंह ने लिखाः ' ग़ज़ल जिंदगी की पलकों पर थरथराती हुई आंसू की बूंदें हैं, जो सूरज की रोशनी अपने अँदर समोकर सतरंगी आभा से आलोकित हो जाती है।
  10. समकालीन ग़ज़ल की परिदशा को रेखांकित करती हुई इसकी आंतरिक तरलता को स्पर्शित करते हुए हिंदी ग़ज़ल की प्रमुख कवियत्री मधुरिमा सिंह ने लिखाः ' ग़ज़ल जिंदगी की पलकों पर थरथराती हुई आंसू की बूंदें हैं , जो सूरज की रोशनी अपने अँदर समोकर सतरंगी आभा से आलोकित हो जाती है।
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