सांख्यदर्शन meaning in Hindi
pronunciation: [ saanekheydershen ]
Examples
- बांकेसिद्ध , कोटितीर्थ, देवांगना: चित्रकूट की पंचकोसी यात्रा का प्रथम पडाव अनुसुइया के भ्राता सांख्यदर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल का स्थान बांकेसिद्ध के नाम से प्रसिद्ध है।
- वस्तुतः एक ऐसेसंशोधन के बाद जिसने सांख्यदर्शन का वेदांत की परिधि में पहुंचा दिया था , सांख्य का एक स्वतंत्रसंप्रदाय के रुप में अस्तित्व समाप्त हो चुका था.
- बांकेसिद्ध , कोटितीर्थ , देवांगना : चित्रकूट की पंचकोसी यात्रा का प्रथम पडाव अनुसुइया के भ्राता सांख्यदर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल का स्थान बांकेसिद्ध के नाम से प्रसिद्ध है।
- विज्ञानभिक्षु अनिरुद्ध की इस मान्यता की कि सांख्यदर्शन अनियतपदार्थवादी है- कटु शब्दों में आलोचना करते हैं * अनिरुद्ध ने कई स्थलों पर सांख्य दर्शन को अनियत पदार्थवादी कहा है।
- सांख्यदर्शन में वर्ग की दृष्टि से जड़ चेतन , अजतत्त्वों की दृष्टि से भोक्ता , भोग्य और प्रेरक तथा समग्ररूप से तत्त्वों की संख्या 24 , 25 वा 26 आदि माने गए हैं।
- सांख्यदर्शन , प्रकृति को सत्त्व , रज और तमोगुण रूप त्रयात्मक स्वीकार करता है और तीनों परस्पर विरुद्ध है तथा उनके प्रसाद-लाघव , शोषण-ताप , आवरण-सादन आदि भिन्न-भिन्न स्वभाव हैं और सब प्रधान रूप हैं , उनमें कोई विरोध नहीं है।
- न्यायदर्शन के प्रवर्तक गौतम ऋषि , वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक कणाद , सांख्यदर्शन के प्रवर्तक कपिल , मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी इनके अलावा मिथिला की महान भूमि में प्रकांड विद्वान कुमारिलभट्ट , मंडन मिश्र , अयाचि मिश्र , उद्यनाचार्य , गंगेशोपाध्याय , वाचस्पति और विद्यापति जैसी महान विभूतियों ने जन्म लिया .
- न्यायदर्शन के प्रवर्तक गौतम ऋषि , वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक कणाद , सांख्यदर्शन के प्रवर्तक कपिल , मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी इनके अलावा मिथिला की महान भूमि में प्रकांड विद्वान कुमारिलभट्ट , मंडन मिश्र , अयाचि मिश्र , उद्यनाचार्य , गंगेशोपाध्याय , वाचस्पति और विद्यापति जैसी महान विभूतियों ने जन्म लिया .
- योग की मोक्षावस्था भी ज्ञानमूलक है; किन्तु उसका यह ज्ञान या विवेकसिद्धान्त , सांख्य के विवेकसिद्धान्त की अपेक्षा कुछ स्थूल है. फिर भी दोनों दर्शनों की कुछ सैद्धान्तिक भिन्नता के फलस्वरूप यह मानने में तनिक भी सन्देह नहीं होना चाहिए कि सांख्यदर्शन के जो सूक्ष्म सिद्धान्त हैं उनको व्यवहारिक जीवन में परिणत करने का कार्य योग दर्शन ने ही किया है.
- पुरुष के लिए उदासीन शब्द का प्रयोग भी कियाजाता है . ईश्वरक़ष्ण द्वारारचित सांख्य कारिका में वेदांत और सांख्यदर्शन में सामंजस्य स्थापित करनेके दुराग्रह के कारण बताया गयाहै कि `पुरुष के संयोग से ही लिंग अर्थात्मूलप्रक़ति के साधक हेतु (बुद्धी आदि रुप में परिणत सत्व, रज, तम) गुणोंमें ही निहित रहनेपर भी (उनके सन्निधानवश) उदासीन ही कर्ता की तरह (सक्रिय) प्रतीतहोता है.