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सर्पराज meaning in Hindi

pronunciation: [ serperaaj ]
सर्पराज meaning in English

Examples

  1. स्थान हैं , उसमें अध्शि्ति, प्रेम रूप भ्रमर से सुशोभित, और निरन्तर सद्वासनाओं से अल्कृत सर्पराज वासुकि को धरण किए हुए, समस्त पुष्पों से पूजनीय, सुन्दर गुणों से प्रकट हुए,
  2. पौराणिक बासुकी नाग ( सर्पराज ) के नाम पर विख्यात इस बर्फीले कुण्ड के ऊपर बादल फटने से ही इस बार करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की आस्था के केन्द्र केदारनाथ में इस कदर अकल्पनीय बाढ़ आयी है।
  3. यदि द्विजिछ चुगलखोर ;बात बदलने वालाद्ध समझकर आप मेरी उपेक्षा करते हैं , तो स्वयं द्विजि सर्पराज को आपने अपने गले लगाया है, अत: आपने जिस किसी रूप में भी जिसको अपनाया है, वह ध्न्य, ध्न्य हो जाता है इसलिए हे
  4. भावार्थ : - उदार ( परम श्रेष्ठ एवं महान् ) सर्पराज शेषजी भी सेना का बोझ नहीं सह सकते , वे बार-बार मोहित हो जाते ( घबड़ा जाते ) हैं और पुनः-पुनः कच्छप की कठोर पीठ को दाँतों से पकड़ते हैं।
  5. जो शिव कारणों के भी परम कारण हैं , अग्निशिखा के समान अति प्रकाशवान , पिंगल नेत्रोंवाले हैं , सर्पराज जिनके हार और कुंडल हैं , जिनकी स्तुति ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने की और वर पाया , उन भगवान शिव को मैं नमस्कार करता हूं।
  6. जो शिव कारणों के भी परम कारण हैं , अग्निशिखा के समान अति प्रकाशवान , पिंगल नेत्रोंवाले हैं , सर्पराज जिनके हार और कुंडल हैं , जिनकी स्तुति ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने की और वर पाया , उन भगवान शिव को मैं नमस्कार करता हूं।
  7. शिव के शेखर में चन्द्रमा है , तथा भुजाओं में सर्पराज वासुकि है, कण्ठ में विष की कलिमा सुशोभित है, औरर अध्र्नारी र होने से शरीर में सुन्दरी ;पार्वतीद्ध विराजमान है, ऐसे शिव के समान कोई अन्य देवता हमें नहीं दीखते हैं, अत: शिव से अतिरित्तफ किसी अन्य देवता को
  8. ऐसा करते ( अर्थात् बार-बार दाँतों को गड़ाकर कच्छप की पीठ पर लकीर सी खींचते हुए ) वे कैसे शोभा दे रहे हैं मानो श्री रामचंद्रजी की सुंदर प्रस्थान यात्रा को परम सुहावनी जानकर उसकी अचल पवित्र कथा को सर्पराज शेषजी कच्छप की पीठ पर लिख रहे हों॥ 2 ॥
  9. ; मैंद्ध संयाकाल में विशेष श्रृंगार से सुन्दर , वेद बोध्ति जो पवित्रा स्थान हैं , उसमें अध्शि्ति , प्रेम रूप भ्रमर से सुशोभित , और निरन्तर सद्वासनाओं से अल्कृत सर्पराज वासुकि को धरण किए हुए , समस्त पुष्पों से पूजनीय , सुन्दर गुणों से प्रकट हुए , भवानी से आलिति , भगवान् श्री गिरिमल्लिकाजु र्न नामक महालि की सेवा करता हूँ।
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