लोक-नाट्य meaning in Hindi
pronunciation: [ lok-naatey ]
Examples
- प्रकाशित कृतियाँ : बीस ,जिनमें प्रमुख समीक्षा ग्रन्थ हैं - शब्दशक्ति सम्बन्धी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिंदी काव्यशास्त्र , मालवा का लोक-नाट्य माच और अन्य विधाएं , अवन्ती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व , मालवसुत पं.
- जब कोई गीत अवाम की ज़ुबान पर चढ़ जाता है तो समझिए उसने लोकप्रिय होने का पद पा लिया ! -संजय पटेल मालवा के लोक-नाट्य माच में थिरकतीं हैं मानवीय संवेदना मालवी माच में केवल मनोरंजन नहीं है, इसमें लोकरंजन है।
- -नरहरि पटेल उज्जैन के अंकुर मंच द्वारा हाल ही प्रकाशित और डॉ . शैलेंन्द्रकुमार शर्मा द्वारा संपादित महत्वपूर्ण दस्तावेज़ 'मालवा का लोक-नाट्य माच और अन्य विधाएँ...पुस्तक की विस्तृत समीक्षा शीघ्र ही रे मनवा रंग तन,रंग मन,होली आई रंग गुलाल ! रे मनवा रंग तन रंग मन होली लाई रंग गुलाल।
- भिखारी ठाकुर ने लोक-नाट्य ' बेटी बेचवा ' में यदि स्त्री को क्रय-विक्रय की वस्तु समझे जाने और एक वृद्ध व्यक्ति का तरुणी से विवाह रचाने की कुप्रथा पर प्रहार किया , वहीं उनके एक और बेहद लोकप्रिय नाटक- ' बिदेशिया ' में जाति-वर्ण-भेद की समस्या पर प्रहार किया गया है।
- कृतियाँ : 25 , प्रमुख हैं- शब्दशक्ति सम्बन्धी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिंदी काव्यशास्त्र , मालवा का लोक-नाट्य माच और अन्य विधाएं , अवन्ती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व , मालवसुत पं . सूर्यनारायण व्यास , हरियाले आँचल का हरकारा : हरीश निगम , आचार्य नित्यानंद शास्त्री और रामकथा कल्पलता , देवनागरी विमर्श , हिंदी भाषा संरचना , मालवी भाषा और साहित्य , आदि .
- भारत में फिल्में-एक संगोष्ठी / सामान्य सर्वेक्षण -जगमोहन / भारत में सिनेमा और सिनेमेटोग्राफी -नील गोखले / भारतीय फिल्म संगीत तथा नृत्य की परम्परा एवं प्रवृत्तियां -तारा रामस्वामी / भारतीय फिल्मों की विषयवस्तु -ख्वाजा अहमद अब्बास / यथार्थता और भारतीय चलचित्र -विक्रम सिंह / भारतीय फिल्में तब और अब -सुभाष चन्द्र सरकार / फिल्म निर्माताओं का निर्माण -जगत मुरारी / भारतीय फिल्में और सेंसर -गोपाल दास खोसला / आधुनिक नाटक और लोक-नाट्य -देवी लाल सामर
- इस अंचल में प्राचीन समय से रामकथा का प्रचलन तो समझ में आता हैं , क्योंकि देवी कौशल्या का मायका और श्रीराम का ननिहाल यहीं पर थी ; परंतु महाभारत की कथाओं का यहाँ के लोक-नाट्य और कथा-कहानी में रचा-बसा होना यह जिज्ञासा उत्पन्न करता है कि एक शताब्दी पूर्व तक घने वनों से घिरे रहे छत्तीसगढ़ में संस्कृति के ऐसे कौन से सेतु थे जिनसे होकर वे समस्त कथाएँ यहाँ की वाचिक परंपरा में शामिल हो गईं , जो पश्चिमोत्तर के पंजाब में और पूर्वोतर के अविभक्त बंगाल में प्रचलित थीं।